scriptमराठी संगीत में संस्कृति और परंपरा की झलक | A glimpse of culture and tradition in Marathi music | Patrika News
भोपाल

मराठी संगीत में संस्कृति और परंपरा की झलक

मराठी साहित्य अकादमी की ओर से दीवाली पहाट का आयोजन

भोपालOct 27, 2019 / 10:02 am

hitesh sharma

मराठी संगीत में संस्कृति और परंपरा की झलक

मराठी संगीत में संस्कृति और परंपरा की झलक

भोपाल। मराठी साहित्य अकादमी की ओर से शनिवार को पिपलानी स्थित गणेश मदिर परिसर में दीवाली पहाट के तहत स्वर दीपोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यकम मं प्रात:कालीन संगीत सभाएं हुई। मराठी समुदाय में दीपावली के एक दिन पहले रूप चर्तुदशी को उत्सवपूर्व मनाए जाने की यह एक परंपरा रही है। इस दिन गृहणियों एवं परिवार के सदस्य सूर्योदय से पहले विशेष रूप से तैयार किए गए उपटन सहित स्नान कर देव दर्शन के लिए जाते है। इस दौरान प्रात:कालीन रागों पर आधारित पारंपरिक मराठी उत्सव गीत भी गाए जाते है। संस्कृति और परंपरा को बरकरार रखते हुए अकादमी की ओर हुए आयोजन में मराठी समाज के सदस्यों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।

पारंपरिक मराठी गायन की प्रस्तुति

इस दौरान पुणे से आईं गायिका मंजुषा पाटिल ने प्रात:कालीन रागों पर आधारित पारंपरिक मराठी गायन की प्रस्तुति दी। प्रस्तुति के लिए उन्होंने राग रामकली में पारंपरिक बंदिश आज राधे तोरे बदन…, की शानदार प्रस्तुति दी। इस क्रम में उन्होंने इसी राग में द्रुत लय में बंदिश उन संग लागी मोरी अंखियां…, की प्रस्तुति देकर एक नायिका के प्रेम भाव को उजागर किया।
वहीं उपशास्त्रीय गायन में उन्होंने ठुमरी पेश की जिसके बोल थे कौन गली गयो श्याम..। प्रस्तुतियों की इस श्रृंखला में उन्होंने संतों की रचनाओं में संत ज्ञानेश्वर रचित अवघा ची संचार… और अवघे गरजे पंढरपुर… की प्रस्तुति दी। जनाबाई रचित संत भर पंढरीत… और संत चोखामेला की रचना अबीर गुलाल उधळीत रंग… के जरिए संत परंपरा के अभंग सुनाए।
उन्होंने प्रस्तुति का समापन मीराबाई रचित भजन, मैं सांवरे के रंग राची… सुनाया जो राग भैरवी में निबद्ध रहा। उनके साथ हारमोनियम पर विवेक बंसोड, तबले पर रामेंद्र सिंह सोलंकी और अनुश्री बंसोड ने लहरा दिया। संचालन शरद कनमडीकर ने किया।

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