जिले में प्रतिदिन लगभग 1.20 लीटर दूध का उत्पादन होता है। हलवाई की दुकानें, डेयरियां, चिलर सेंटर बंद हो जाने तथा पैक्ड दूध की मांग बढ़ जाने से शहरों में दूध की खपत 40 फीसदी तक गिर गई है। प्रशासन ने जिन 560 दूधियों को गांव से दूध लाकर शहर में वितरित करने के लिए पास जारी किए हैं। गांवों के आसपास चलने वाली मावा की डेयरियां बंद होने से दूधियों को सस्ता दूध बेचने के सिवाय इनके पास कोई दूसरा चारा नहीं है।
घाटे का सौदा हो गया दुग्ध उत्पादन दुग्ध उत्पादन घाटे का सौदा हो जाने से पशुपालकों का मोहभंग हो रहा है। किसानों की माने तो 8 लीटर दूध देने वाली भंैस 70-80 हजार के बीच में आ रही है। 8 लीटर दूध 160 रुपए का हो रहा है, जबकि भंैस प्रतिदिन 100 रुपए का भूसा और चारा ही खा जाती है। भैंस की कीमत का ब्याज भी निकाला जाए तो पशुपालक की दूध बेचने के बाद मेहनत भी नहीं निकल पाती।
लॉकडाउन से पूर्व गांव में आने वाले दूधिए और आसपास की डेयरियां 40 और 45 रुपए प्रति लीटर की दर से दूध खरीदती थी, लेकिन अब सिर्फ दूधिए दूध खरीदने के लिए आ रहे हैं। दूध का भाव 20 रुपए रह गया है। गांव में तो खरीदने वाला नहीं है और शहर में बेचने की अनुमति नहीं है।
अशोक सिंह नरवरिया, हीरापुरा, मेहगंाव
लॉकडाउन के चलते खपत कम हुई है, जबकि उत्पादन पर कोई असर नहीं पड़ा है। इस दौरान पैक्ड दूध की डिमांड बढ़ जाने का भी भाव पर असर पड़ा है। लॉकडाउन खुलने के बाद फिर से भाव बढऩे की संभावना है।
बीएस सिकरवार, उपसंचालक, पशु चिकित्सा सेवाएं