दिलचस्प बात यह है कि इस संयंत्र की मशीनें संचालक ने अपने स्तर पर तैयार कराई है। प्लांट संचालक ने अंतरराष्ट्रीय मानक के आधार पर पायरोलिसिस टेक्नोलॉजी विकसित की। इसका पेटेंट भी करवाया है। विदेशों से कई इंजीनियर प्लांट देखने यहां आ रहे हैं। करीब 50 करोड़़ रुपए लागत के इस प्लांट में वेस्ट रबर व प्लास्टिक से रीकवर्ड कार्बन ब्लैक ऑयल एवं गैस का उत्पादन किया जा रहा है।
इस प्लांट के संचालक एसके सुराणा ने बताया कि कम्पनी की विकसित पायरोलिसिस टेक्नोलॉजी मेरिट, क्षमता व प्रदूषणरहित होने के मापदंडों में खरी उतरी है। केन्द्रीय व राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने संयंत्र को देश-दुनिया का सबसे बड़ा और मॉडल प्लांट माना है। इसी प्लांट की यूनिट सांतोल ग्रीन एनर्जी के मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. शैलेश मकडिय़ां ने हाल में अमरीका के वेस्ट वर्जिनिया की कंपनी और अफ्रीकी देश कांगो में संयुक्त उपक्रम शुरू किया।
प्लांट के प्रोसेस से प्लास्टिक, टायर व सोलिड वेस्ट को बिना ऑक्सीजन वाले वातावरण में 750 डिग्री से नीचे जलाया जाता है। पायरोलिसिस ऑयल का उपयोग सीमेंट समेत कुछ दूसरी इंडस्ट्री में ईंधन के रूप में हो रहा है। कार्बन ब्लैक गैस के उपयोग से सोडियम सिलिकेट जैसे प्रोडक्ट का उत्पादन हो रहा है।
चिमनी है लेकिन गैस नहीं उगलती-
इस संयंत्र में जहरीली व खतरनाक गैस का उत्पादन नहीं होता है। प्लांट में चिमनी लगी है, लेकिन उससे वायुमंडल में कोई गैस नहीं छोड़ी जाती। कार्बन ब्लैक डिस्चार्ज, अपग्रेडेशन, साइजिंग, पेलेटिंग और पैकेजिंग को धूल तथा श्रमिकों को किसी तरह के खतरे से बचाती है।
उच्च मानकों पर उत्पादन-
प्लांट में टेरी एनर्जी रिसर्च इंस्टीट्यूट तथा नीरी राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान के अनुसार उत्पादन होता है।प्लांट से 20 से 50 प्रतिशत कार्बन ब्लैक, 15 से 45 प्रतिशत ग्रीन ऑयल, 10 से 15 प्रतिशत स्टील वायर, 10 प्रतिशत के करीब गैस निकलती है। ग्रीन ऑयल प्रदूषण रहित है जबकि निकल रही गैस सिलेण्डर में भरी जा रही है, जिसे प्लांट में ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर लेते हैं।
50 करोड़ रुपए प्लांट की लागत
100 टन प्रतिदिन की क्षमता
42 टन ग्रीन ऑयल का प्रतिदिन उत्पादन
32 टन प्रतिदिन कार्बन ब्लैक का उत्पादन
15 टन प्रतिदिन गैस जो प्लांट में काम आती