शिवलिंग पर बीच में नीले रंग की धारी समाज सेवी बनवारी लाल जोशी के अनुसार बद्रीनारायण चोटिया व खाण्डल विप्र समाज के परिवारों से सहयोग राशि एकत्रित कर मंदिर निर्माण की नींव रखी गई थी। १5 मई 1986 (वैशाख शुक्ला षष्ठी सम्वत 2043) को मंदिर में शिव परिवार एवं हनुमानजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई। औंकारेश्वर से लाए गए इस शिवलिंग पर बीच में नीले रंग की धारी बनी होने से इसका नाम नीलकंठ महादेव रख दिया गया। मंदिर के पहले पंडित हीरालाल दुगोलिया थे, अभी यहां के पुजारी केदार शर्मा है।
रोजाना दो हजार कैन पानी यहां मंदिर के बाहरी हिस्से में प्याऊ है, इस प्याऊ के जरिए आसपास के लोग रोजाना दो हजार कैन पानी की भरते है। यहां का शुद्ध एवं मीठा रहे, इसके लिए आरओ व एसी भी स्थापित है। प्याऊ के मीठे पानी की क्षेत्र में विशिष्ठ पहचान है। यहां राम नाम का विशेष बैंक है, जहां राम नाम लिखने के लिए निशुल्क पुस्तकें मिलती है, यहां रामनाम लिखित करीब एक लाख पुस्तकों का संग्रह हो चुका है।
चालीस साल से हो रहा कीर्तन खास बात यह है कि यहां गत चालीस साल से शास्त्रीनगर महिला मंडल द्वारा स्थापना से ही रोजाना मंदिर परिसर में सायं 4 से 6 बजे तक नित्य भजन-कीर्तन व सत्संग किया जा रहा है। यहां कोरोना संकट काल में भी चुनिंदा महिला कीर्तन करती थी।