जानकारों के अनुसार प्राचीन समय ब्रिटिश काल में अजमेर से मेवाड़ की राजधानी उदयपुर जाने के लिए मांडलगढ़ होकर गुजरना पड़ता था। खानवा के युद्ध में राणा सांगा गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इतिहासकार बताते हैं कि उनके शरीर पर 80 घाव थे। जिनमें एक हाथ एक पाव तक निशक्त हो चुके थे। घायल अवस्था में राणा सांगा ने अपने साथ चल रहे सैनिकों से इच्छा जाहिर करते हुए कहा कि यदि किसी कारण मेरी मृत्यु हो जाए तो मेरा अंतिम संस्कार मेवाड़ धरा पर ही किया जाए।
खानवा के युद्ध के पश्चात वापस लौटते समय राणा सांगा की कालपी नामक स्थान जो मध्य प्रदेश में पड़ता है उनकी मौत हो गई । इसके पश्चात राणा सांगा की अंतिम इच्छा अनुसार उनकी पार्थिव देह को मेवाड़ की तरफ लाया जा रहा था। जिसमें मांडलगढ़ मेवाड़ का प्रथम स्थान आया। जहां पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनके दाह संस्कार के स्थान को लेकर कोई प्रमाणीकरण नहीं हो पाया। जबकि इतिहासकारों के अनुसार उनके दाह संस्कार स्थल वहां एक छतरी बनाई गई थी। उस आधार पर यह मान्यता है उनका दाह संस्कार करने के बाद छतरी मनाई गई थी। कस्बे के उत्तरी पूर्वी परकोटे के नीचे छतरी समरोह स्थल दूसरी खाचरोल मार्ग पर स्थित है।
राजपूत समाज मनाता है समारोहकस्बे में राजपूत समाज राणा सांगा की जयंती समारोह मनाता है। पुरातत्व विभाग द्वारा एक करोड़ रुपए से किले का जीर्णोद्धार किया जा रहा है।