अमित ने बताया कि चार साल पहले पहली बार एक डस्टबीन से विक्षिप्त को खाना उठाकर खाते देखा तो दिल का दर्द आंखों में उतर आया। सारी रात दिमाग में यही बात चलती रही कि उनके लिए क्या करें? बस कुछ दोस्तों के साथ प्लानिंग की और ऐसे लोगों के लिए शहर के कुछ होटल से फूड पैकेट दान में लेने लगे और उन तक पहुंचाने लगे। कभी उन्हें नहलाकर अच्छे कपड़े पहना देते तो कभी उनका इलाज करा देते। पर 2019 की पांच जनवरी की रात ने उनके जीवन में एक नया मोड ला दिया। ग्लोब चौक के किनारे ठंड से अकड़कर एक बुजुर्ग काफी गंभीर हो चुकी थी। वे अस्पताल भी लेकर गए लेकिन उसे बचा नहीं पाए।
बुजुर्ग की मौत के बाद लगा कि वे बेसहारा को खाना खिलाकर केवल उनका पेट भर सकते हैं, लेकिन मौसम की मार से बचाने और उनकी देखभाल के लिए एक छत का होना भी जरूरी है। बस क्या था सांसद विजय बघेल के प्रयास से उन्हें सेक्टर 3 में एक पुरानी खाली पड़ा मकान मिला और उसे उन्होंने सभी के सहयोग से रिनोवट करा इसे एक आश्रय गृह में तब्दील कर दिया। 2020 में पांच बेसहारा बुजुर्गो और विक्षिप्तों के साथ शुरू की इस संस्था में आज 22 लोग रहते हैं।
अमित ने बताया कि उनकी संस्था में हर कोई अपने सामर्थ के अनुसार डोनेशन करता है। बड़े लोग जहां हजारों में दान देते हैं तो कई मीडिल क्लास वाले 8 से 10 रुपए का भी दान देते हैं। उन्होंने बताया कि यहां प्रति व्यक्ति के एक घंटे की सेवा का खर्च 8 रुपए के हिसाब से भी दान स्वीकार करते हैं, ताकि लोगों को भी यह संतुष्टि रहे कि एक घंटे ही सही पर उनके पैसे जरूरतमंद बुजुर्ग के लिए खर्च हुए। वही संस्था में मेडिकल कैंप, दवाइयों की भी सुविधा है जो विभिन्न संस्थाओं की मदद से दी जा रही है।
संस्था में अमित सुबह बुजुर्गो को उठाने से लेकर रात को उनके सोने तक साथ रहते हैं। जिस तरह बेटा अपने पैरेंट्स की केयर करता है, ठीक उसी तरह अमित भी सभी को नहलाने, तैयार करने, उन्हें दवा देने, डाइपर बदलने जैसे सारे काम खुद करते हैं। वहीं बुजुर्ग महिलाओं के लिए फिमेल स्टॉफ मदद करता है। वही उनके साथ ही चेतना, देबजानी, जोबनजीत सिंह, प्रवीण, अजय मंडल, सुशील सिंह, लक्ष्मी, संदीप गुप्ता, ऋतुपर्णा, पारूल, आयुष, प्रगति, राधेश्याम, आकाशदीप सहित 80 ऐसे वॉलेंटियर है जो उनकी एक आवाज पर मदद के लिए दौड़े चले आते हैं।