कथा में मुयमंत्री विष्णुदेव साय की पत्नी कौशल्या साय लगातार दूसरे दिन और विधायक गजेंद्र यादव व शिवरीनारायण के मठाधीश महंत रामसुंदर दास भी पंडाल में कथा सुनने मौजूद हुए। कथा के दौरान पंडित प्रदीप मिश्रा ने गुरु, शिष्य का जिक्र करते हुए बताया कि, गुरु शिष्य को मंजिल तक पहुंचा देता है, अगर अपने घर में कोई शंकर का भक्त, शिव का गुणगान करने वाला पैदा हो जाता है, तो वह हमारे कुल और कई पीढ़ियों को पार लगा देता है।
एक शिवभक्त कई पीढ़ियों को पार लगा देता है
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, दुनिया का सबसे बड़ा तत्व या आभूषण मौन रहना, चुप रहना है। जिस दिन तुहारा व्रत है उस दिन मौन रहो, साधना करो, चुप रहने का जो सुख है वो और किसी में नहीं। ऐसा नहीं कि आंख बंद कर के ही तप कर सकते हैं। एक दिन शिवजी ने बोला मुझे त्रिपुरासुर का वध करने के लिए थोड़ा बल एकत्रित करना पड़ेग।
ब्रह्मा जी और विष्णुजी पूछ रहे कि ये बल कहां से आएगा? शिवजी ने कहा वो बल मेरे भीतर से ही मुझे प्रकट करना पड़ेगा, मैं अस्त्र प्रकट करूंगा जिसका नाम अघोर अस्त्र है। ब्रह्माजी ने कहा ये अस्त्र तो बहुत कठिन है आप इसे कैसे प्राप्त करेंगे? भगवान शंकर कहने लगे आप चिंता मत करो इसे प्राप्त करने के लिए में तप में बैठूंगा।
महादेव की एक बूंद आंसू से उत्पन्न हुआ रुद्राक्ष का वृक्ष
भगवान शिव की कथा कहती है कि, नेत्र खुले भले रखो अपने इन्द्रियों को पकड़ कर रखो और गलत चीज न देखो, अगर कोई आधा गिलास पानी लाया तो आधा गिलास पानी मत देखो, उसका दिल देखो की तुहारे लिए वो आधा गिलास तो पानी भर कर लाया है। शिव महापुराण की कथा कहती है कि, शंकर भगवान ने 1 हजार वर्ष तक अपना नेत्र बंद नहीं किया, बिना पलक झपकाएं तप करते रहे, जब उन्होंने अघोर अस्त्र प्राप्त कर लिया तब शिव जी ने अपने आंखें बंद की और पलक झपकाई। उनके आंखों से एक बूंद आसूं निचे गिर गया, जैसे ही आंसू गिरा एक वृक्ष उत्पन्न हो गया जिसका नाम रुद्राक्ष का वृक्ष हुआ। जब महादेव ने 1 हजार साल तपस्या की तब रुद्राक्ष उत्पन्न हुआ। अघोर अस्त्र और अघोर मन्त्र के बराबर एक रुद्राक्ष होता है। हजारों साल का तप की ताकत रुद्राक्ष में होती है।