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भिलाई

ब्लड बैंक का लाइसेंस निरस्त किया तो BSP के सबसे बड़े अस्पताल में शुरू हो गया मरीजों की जान से खिलवाड़

सेक्टर-9 के ब्लड बैंक को निलंबित करने के आदेश को बीएसपी प्रबंधन उच्च न्यायालय बिलासपुर में चुनौती देगा।

भिलाईMay 07, 2018 / 10:36 am

Dakshi Sahu

patrika
भिलाई. पंडित जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय एवं अनुसंधान केंद्र सेक्टर-9 के ब्लड बैंक को निलंबित करने के आदेश को बीएसपी प्रबंधन उच्च न्यायालय बिलासपुर में चुनौती देगा। ब्लड बैंक संचालन में कई तकनीकी खामियां पाए जाने पर छत्तीसगढ़ राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने लाइसेंस 120 दिनों के लिए निलंबित कर दिया है। इसका असर यहां इलाज कराने आने वाले मरीजों पर पड़ रहा है।
अस्पताल प्रशासन ने रविवार को दूसरे दिन भी दुर्घटना में घायल व अन्य गंभीर बीमारी से पीडि़तों का इलाज करने से मना कर दिया। गैर बीएसपी निजी मरीजों को तो बाहर से ही लौटा दे रहे हैं। बीएसपी के निदेशक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएं डॉ. केएन ठाकुर ने रविवार को अस्पातल के सभी निदेशकों व वरिष्ठ चिकित्सों की बैठक बुलवाई।
ब्लड बैंक को निलंबित करने से उत्पन्न विषम परिस्थितियों पर चर्चा की। ब्लड बैंक संचालन नियमों और जिन कारणों से छत्तीसगढ़ राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग ने लाइसेंस निलंबित किया है, उन पर फिर समीक्षा की। अंत में यह तय किया गया कि अस्पताल प्रशासन निर्धारित मानदंडों के अनुरूप ही ब्लड बैंक का संचालन कर रहा है। ऐसी स्थिति में न्यायालय के शरण में ही जाना उपयुक्त होगा।
बताया गया है कि संयंत्र के उच्च प्रबंधन को भी इससे अवगत करा दिया गया है। भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन द्वारा संचालित अंचल का सबसे बड़ा व विश्वसनीय अस्पताल ऐसी परिस्थिति से निपटने में वाकई में सक्षम नहीं है? या जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा की जा रही है? बीएसपी प्रबंधन चाहे तो छत्तीसगढ़ राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग से ब्लड स्टोरेज सेंटर की अनुमति मांग सकता है, विभाग तुरंत अनुमति देने तैयार भी है, लेकिन प्रबंधन की ओर से अब तक कोई पहल नहीं की गई है।
बीएसपी के निदेशक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाएं डॉ. केएन ठाकुर का साफ कहना है कि हमें ब्लड स्टोरेज सेंटर की आवश्यकता नहीं है। जरूरत पडऩे पर ब्लड मंगा लेंगे। छत्तीसगढ़ राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सेक्टर-9 अस्पताल के ब्लड बैंक को चार महीने के लिए ही निलंबित किया गया है।
तब तक इलाज व्यवस्था को सुचारु बनाए रखने अस्पातल प्रशासन केपास विकल्प है, लेकिन प्रबंधन ही खुद ना नुकूर कर रहा है। प्रबंधन चाहे तो शासन से ब्लड स्टोरेज सेंटर की अनुमति मांग सकता है। ब्लड स्टोरेज सेंटर सरकारी और सार्वजनिक उपक्रम के अस्पतालों के लिए ही है। सेक्टर-9 अस्पताल प्रशासन सरकारी ब्लड बैंक से टेस्टेड ब्लड और कंपानेंट अपने स्टोरेज में स्टाक कर सकता है।
ऐसी स्थिति में मरीजों के इलाज में कहीं कोई व्यवधान नहीं आएगा। डायरेक्टर सेक्टर ९ हॉस्पिटल डॉ. केएन ठाकुर ने बताया कि कानूनी पहलुओं को लेकर अस्पताल के निदेशकों के साथ चर्चा हुई है। अस्पताल में सामान्य इलाज हो रहे हैं, क्रिटिकल केस को लौटा दे रहे हैं। अभी हमें ब्लड स्टोरेज सेंटर की जरूरत नहीं है। जब ब्लड की आवश्यकता होगी, तब मंगाया जाएगा।
सबसे ज्यादा शुल्क
१. पहले रियायती और बेहतर इलाज के लिए सेक्टर-9 अस्पताल का नाम लिया जाता था। अब ज्यादातर निजी मरीज बगैर इलाज के ही लौटा दिए जाते हैं। प्राइमरी ट्रीटमेंट के बाद डॉक्टर सीधे निजी अस्पताल जाने पर्ची थमा देते हैं। अब भी डॉक्टरों को मौखिक आदेश दिया गया है कि प्राइमरी ट्रीटमेंट करें और रेफर कर दें।
२.कार्पोरेट सेक्टर का अस्पताल होने के बावजूद यहां इलाज सबसे महंगा है। अगर अस्पताल में पर्याप्त इलाज सुविधाएं नहीं है तो प्रबंधन पिछले तीन साल से शुल्क में बढ़ोतरी क्यों कर रहा है? यहां ओपीडी फीस 420 रुपए है। इसी तरह केजुअल्टी में आपको देखते ही क्यों न लौटा दें, पहले 780 रुपए की पर्ची कटानी पड़ती है। अगर कुछ देर आब्जर्वेशन में रखने की नौबत आ जाए तो 2000 रुपए फिर चुकाना पड़ता है।
यहां तो ब्लड बैंक नहीं फिर भी रोज होती है सर्जरी
चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े जानकारों का कहना है कि हर बड़े शहर में सैंकड़ों अस्पताल होते हैं मगर ब्लड बैंक की सुविधा इक्के- दुक्के में ही होती है, फिर भी वहां माइनर से लेकर मेजर तक की सर्जरी होती है। ब्लड की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए प्रयास करने की बजाए प्रबंधन ने जानबूझकर स्थिति को और भयावह बना दिया है। कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि यह अपनी नाकामी छुपाने प्रबंधन की साजिश है। बजाए अपनी खामियों को दूर करने के इस तरह मरीजों को जानबूझकर परेशान कर शासन पर भावनात्मक दबाव बनाया जा रहा है।
1. ब्लड बैंक के रिनुअल सर्टिफिकेट के साथ अनुबंध प्रमाण पत्र नहीं।
2. ब्लड बैंक के दो नए एंप्लाई अजय आर्या और संदीप पांडेय के संबंध में जानकारी नहीं दी।
3. लाइसेंस अथॉरिटी ने जिस डॉक्टर के नाम से ब्लड जांच करने की अनुमति दी है, उनकी बजाए डीएनबी डॉक्टर्स जांच करते थे।
4. जिस किट में ब्लड की जांच करते थे उसे लाइसेंस अथॉरिटी ने नहीं दिया था।
5. हेपेटाइटिस की जांच करने वाली किट सहीं नहीं मिली। सिर्फ डोनर की स्क्रीनिंग को दर्शता था। किट का रिकॉर्ड नहीं दिखा रहा था।
6. एलाइजा टेस्ट का उल्लेख ब्लड बैग में नहीं मिला।
7. ब्लड बैंक में रिकॉर्ड दुरुस्त
नहीं मिले।
8. डॉ योगेश नेने ब्लड बैंक के लिए क्वालीफाइड नहीं थे। उन्हें पर्याप्त अनुभव नहीं है फिर भी काम देख रहे थे।
9. ब्लड बैंक के जिस कमरे में कंपानेंट तैयार किया जाता था उसमें संक्रमण होने की संभावना अधिक थी।

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