देव स्नान पूर्णिमा के बाद न तो मंदिरों के घंटे बज रहे हैं, और न ही गर्भगृह के द्वार खुले हैं। पुजारी कहते हैं कि भगवान जन्नाथ विष्णु का स्वरूप है, और मानव स्वरूप में वे जगन्नाथ के रूप में धरती पर आए, इसलिए वे बीमार भी पड़ते हैं। इसलिए उन्हें उपचार की भी जरूरत पड़ती है। देवस्नान पूर्णिमा के बाद बीमार पड़े भगवान का उपचार किया जा रहा है। पूजारी बताते हैं कि आषाढ़ में बारिश शुरू हो जाती है, लोग इस बारिश में भीगते हैं और बीमार भी पड़ जाते हैं। भगवान जगन्नाथ भी बारिश में खूब नहाए और फिर बीमार पड़ गए और उन्हें भी औषधि खानी पड़ी। यह परंपरा हमें सीखाती है कि हमें बारिश में अपना ख्याल किस तरह रखना चाहिए। क्योंकि भीगने से जब भगवान बीमार पड़ सकते हैं तो इंसान क्यों नहीं बीमार होगा।
सेक्टर 4 जगन्नाथ मंदिर के पूजारी पितवास पाढ़ी ने बताया कि आयुर्वेदिक काढ़े में पीपली, जावित्री, शहद, नीम, केशर सहित कई ऐसे मसालों का उपयोग किया जाता है, जो शरीर को सर्दी, जुकाम, बुखार आदि में लाभदायक हो। इधर अणसर गृह में भगवान को उलटा सुलाया गया है। नेत्र उत्सव के पहले भगवान जगन्नाथ स्वस्थ हो जाएंगे। पर इससे पहले लगातार 15 दिनों तक भगवान की गुप्त पूजा की जा रही है। इसमें काढ़े लेकर पूजन तक की सेवा सब इस तरह की जाती है कि उसे कोई देख न पाए। इसलिए भगवान को मंदिर के गर्भगृह की जगह अणसर गृह में रखा गया है।