देशमुख ने दुर्ग से लगे अपने गांव कोडिय़ा तक 8 किलोमीटर में सड़के के दोनों किनारे बरगद, पीपल और नीम के पौधे रोपे हैं। ये पौधे अब वृक्ष बन गए हैं। कोडिय़ा से भनपुरी तक और भनपुरी से अंडा के बीच 9 किलोमीटर सड़क के दोनों किनारों पर भी उन्होंने पौधे रोपे हैं। यह सब बिना सरकारी सहयता के किया है। पेड़ों को कटते देख उन्हें बहुत पीड़ा होती है। बिजली के तार खींचने के लिए जगह होने के बाद भी पेड़ से सटाकर जब तार खींचा गया तो गेंदलाल ने बहुत विरोध किया। बिजली की तारों की वजह से सैकड़ों पेड़ों को बेवजह काट दिया गया।
बिजली तार के लिए उनके उगाए पेड़ों को काट दिया गया। गरीबी के कारण 10 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर खेती करने वाले देशमुख पौधे लगाने के साथ उसके देखभाल को पुण्य का काम मानते हैं। वे पेड़ लगाने के बाद बड़े होने के तक देखभाल व सुरक्षा करते हैं। पेड़ों के औषधीय गुणों से परिचित हो गए है। वे प्राकृतिक तरीके से लोगों का उपचार भी करते हैं।
पर्यावरण हितवा संगवारियों ने जन्म दिवस और दिवंगत पुरखों की याद में भी पौधरोपण की परंपरा इन्होंने शुरू की है। इनके कार्यों को देखने तत्कालीन कलेक्टर रीनाबाबा साहेब कंगाले गांव पहुंची थी। उन्होंने पौधे रोपे और पर्यावरण रैली में शामिल भी हुई थी। पर्यावरण जागरूकता के क्षेत्र में अनोखी मिसाल पेश करने वाले ट्री-मेन को पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने भी सम्मानित किया था।