सरकारी स्कूल से निकलकर सर्जर बनने तक के सफर को यादकर मुस्कुरा उठता हूं। पहली बार माशिमं ने किसी को दो विषयों में परीक्षा देने की विशेष मंजूरी दी थी। मेरा पसंदीदा विषय गणित था, लेकिन उतना ही मजा बायोलॉजी में आता। जब बारहवीं के नतीजे आए तो मुझे यकीन नहीं हुआ, मैंने बायो में टॉप किया था, जबकि गणित में सेकंड रहा।
12वीं पास करने के बाद मैंने पीईटी की परीक्षा दी। पीएमटी के इम्तिहान में भी शामिल हुआ। पीईटी में सलेक्शन हो गया। पीएमटी में मुझे आयुर्वेद कॉलेज मिल गया। पीईटी के रैंक से इंजीनियरिंग में प्रवेश ले तो लिया, लेकिन दिल में डॉक्टर बनने की धुन सवार थी।
उस वक्त खुद पर भरोसे के साथ इंजीनियरिंग छोड़ दी। एक साल का ड्रॉप लेकर दोबारा से पीएमटी की तैयारी में जुट गया। दूसरी बार में पीएमटी के 218 रैंक के साथ रायपुर मेडिकल कॉलेज मिला। क्लास में जाता तो वहां सभी प्रोफेसर अंग्रेजी में पढ़ाया करते थे, और मैं ठहरा हिंदी मीडियम। सारा कुछ ऊपर से निकल जाता था, तब मैंने इसका हल निकाला। हॉस्टल में डिक्शनरी से वड्र्स मिलानकर अंग्रेजी समझता।
मात्र कुछ महीने लगे होंगे और मेरे दिमाग से अंग्रेजी का हव्वा गायब हो गया। मैं सच बताऊं तो आप हिंदी मीडियम वाले क्यों न रहे, लेकिन बाहरी दुनिया में सफलता चाहिए तो आपको अंग्रेजी सीखनी होगी, इससे भागने से कुछ नहीं होगा।
रायपुर मेडिकल कॉलेज से ही एमबीबीएस और एमएस तक की पढ़ाई पूरी की। छत्तीसगढ़ में कार्डियो में सुपर स्पेशलिटी का कोई विकल्प नहीं था, इसलिए जयपुर से स्पेशलाइजेशन पूरा करते ही केरला में नौकरी लग गई। सोचता, कहीं भी जाऊं रहना तो ओटी में ही है। तो फिर क्या केरला और क्या छत्तीसगढ़। ये वही अनुभव था, जिसने मुझसे आज तक चार हजार सफल हार्ट सर्जरी करा दी।
जब लोग मेरी सबसे चुनौतीपूर्ण सर्जरी के बारे में पूछते हंै तो वह लड़का याद आ जाता है, जिसे मैंने आइसक्रीम खिला के सर्जरी की। दरअसल, एक युवक को एक्सीडेंट के बाद चेस्ट में चोट आई थी, लेकिन उसके चेस्ट से खून की जगह खास सफेद रंग का फ्लूड निकलता। चुनौती यह थी ढेरों डॉक्टर इस प्रॉब्लम को देख चुके थे, लेकिन पेशेंट की बीमारी पकड़ में नहीं आ रही थी। जब मेरे पास वह आया तो मैंने यूट्यूब पर प्रॉब्लम को पहचानना शुरू किया।
मेरी नजर में यदि प्रदेश को स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर करना है तो सरकार को चाहिए कि वह अच्छी सैलरी पैकेज पर देश के नामी विशेषज्ञों की सेवाएं अपने नागरिकों तक पहुंचाए। एक सर्जन होने के बाद भी मेरी सैलरी एक शिक्षक के बराबर है। मैं अपनी 5 लाख रुपए की नौकरी छोड़कर सिर्फ अपने लोगों की सेवा करने आया। यदि इतने त्याग के बाद भी मेरा बच्चा लोन लेकर पढ़े तो क्या फायदा।
हिंदी मीडियम से पढ़कर खुद को कमतर आंकने वाले स्टूडेंट से कहना चाहता हूं कि पहले तो यह समझ जान लीजिए कि हिंदी मीडियम से पढऩे और अंग्रेजी नहीं जानने का कतई भी यह मतलब नहीं है कि आप लाइफ में कुछ अचीव नहीं कर पाएंगे। मैंने 8वीं तक की पढ़ाई कचांदुर शासकीय स्कूल से पूरी की है। 9वीं में दुर्ग आया। हिंदी मीडियम स्कूल में पहले सिर्फ एक ही विषय लेना होता था, लेकिन मैंने गणित के साथ बायोलॉजी का चुनाव किया। आज एक सफल सर्जन बनकर लोगों की सेवा कर रहा हूं।