भिलाई

मिलिए छत्तीसगढ़ के गरीबों के दिल के डॉक्टर से, हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल से पढ़कर बने देश के टॉप हार्ट सर्जन, Video

हिंदी मीडियम विद्यार्थियों के लिए मिसाल हैं, जिनको अंग्रेजी से डर लगता है। हम बात कर रहे हैं, रायपुर मेकाहारा अस्पताल के कॉर्डियोवैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू की। (Bhilai News)

भिलाईDec 23, 2019 / 12:37 pm

Dakshi Sahu

मिलिए छत्तीसगढ़ के गरीबों के दिल के डॉक्टर से, हिंदी मीडियम सरकारी स्कूल से पढ़कर बने देश के टॉप हार्ट सर्जन, Video

भिलाई. चलिए…, आपको ऐसी शख्सियत से मिलाते हैं, जिन्होंने गुंडरदेही के छोटे से गांव कचांदुर से निकलकर प्रदेश के टॉप कार्डियो सर्जन (Heart surgeon) की फेहरिश्त में जगह बना ली। यह उन हिंदी मीडियम विद्यार्थियों के लिए मिसाल हैं, जिनको अंग्रेजी से डर लगता है। हम बात कर रहे हैं, रायपुर मेकाहारा (MEKAHARA HOSPITAL RAIPUR) अस्पताल के कॉर्डियोवैस्कुलर सर्जन (Cardiovascular surgeons Dr. KK Sahu) डॉ. कृष्णकांत साहू की। अब तक चार हजार सफल कार्डिक सर्जरी करने वाले डॉ. साहू, सचदेवा न्यू पीटी कॉलेज के आंकलन टेस्ट में बच्चों को मोटिवेट करने पहुंचे थे। जहां उन्होंने पत्रिका से खास बातचीत की।
दो विषय में परीक्षा देने की पहली बार माशिमं ने दी थी मंजूरी
सरकारी स्कूल से निकलकर सर्जर बनने तक के सफर को यादकर मुस्कुरा उठता हूं। पहली बार माशिमं ने किसी को दो विषयों में परीक्षा देने की विशेष मंजूरी दी थी। मेरा पसंदीदा विषय गणित था, लेकिन उतना ही मजा बायोलॉजी में आता। जब बारहवीं के नतीजे आए तो मुझे यकीन नहीं हुआ, मैंने बायो में टॉप किया था, जबकि गणित में सेकंड रहा।
दिल में थी डॉक्टर बनने की धुन सवार
12वीं पास करने के बाद मैंने पीईटी की परीक्षा दी। पीएमटी के इम्तिहान में भी शामिल हुआ। पीईटी में सलेक्शन हो गया। पीएमटी में मुझे आयुर्वेद कॉलेज मिल गया। पीईटी के रैंक से इंजीनियरिंग में प्रवेश ले तो लिया, लेकिन दिल में डॉक्टर बनने की धुन सवार थी।
एक साल ड्रॉप लेकर दिया पीएमटी
उस वक्त खुद पर भरोसे के साथ इंजीनियरिंग छोड़ दी। एक साल का ड्रॉप लेकर दोबारा से पीएमटी की तैयारी में जुट गया। दूसरी बार में पीएमटी के 218 रैंक के साथ रायपुर मेडिकल कॉलेज मिला। क्लास में जाता तो वहां सभी प्रोफेसर अंग्रेजी में पढ़ाया करते थे, और मैं ठहरा हिंदी मीडियम। सारा कुछ ऊपर से निकल जाता था, तब मैंने इसका हल निकाला। हॉस्टल में डिक्शनरी से वड्र्स मिलानकर अंग्रेजी समझता।
सीखनी होगी अंग्रेजी
मात्र कुछ महीने लगे होंगे और मेरे दिमाग से अंग्रेजी का हव्वा गायब हो गया। मैं सच बताऊं तो आप हिंदी मीडियम वाले क्यों न रहे, लेकिन बाहरी दुनिया में सफलता चाहिए तो आपको अंग्रेजी सीखनी होगी, इससे भागने से कुछ नहीं होगा।
केरल का जॉब छोड़कर लौटे छत्तीसगढ़
रायपुर मेडिकल कॉलेज से ही एमबीबीएस और एमएस तक की पढ़ाई पूरी की। छत्तीसगढ़ में कार्डियो में सुपर स्पेशलिटी का कोई विकल्प नहीं था, इसलिए जयपुर से स्पेशलाइजेशन पूरा करते ही केरला में नौकरी लग गई। सोचता, कहीं भी जाऊं रहना तो ओटी में ही है। तो फिर क्या केरला और क्या छत्तीसगढ़। ये वही अनुभव था, जिसने मुझसे आज तक चार हजार सफल हार्ट सर्जरी करा दी।
आइसक्रीम खिलाकर की थी सर्जरी
जब लोग मेरी सबसे चुनौतीपूर्ण सर्जरी के बारे में पूछते हंै तो वह लड़का याद आ जाता है, जिसे मैंने आइसक्रीम खिला के सर्जरी की। दरअसल, एक युवक को एक्सीडेंट के बाद चेस्ट में चोट आई थी, लेकिन उसके चेस्ट से खून की जगह खास सफेद रंग का फ्लूड निकलता। चुनौती यह थी ढेरों डॉक्टर इस प्रॉब्लम को देख चुके थे, लेकिन पेशेंट की बीमारी पकड़ में नहीं आ रही थी। जब मेरे पास वह आया तो मैंने यूट्यूब पर प्रॉब्लम को पहचानना शुरू किया।
15-20 सर्जरी देखने पर समझ आया कि हजारों नसों में से एक से यह फ्लूइड बाहर आ रहा है, जिससे पहचनना जितना कठिन है उतना ही उसको ट्रीट करना। फिर क्या था, लीकेज पकडऩे के लिए नया तरीका अपनाया। पेशेंट को आइसक्रीम खिलाई। मालूम था कि जैसे ही लिक्विड अंदर आएगा तो कोशिकाएं उसको एब्जर्व करने लगेंगी और लीकेज का पता चल जाएगा। सच में ऐसा ही हुआ। आज वह युवक भला चंगा घुमता है। उसके परिवार वाले खूब दुआ देते हैं। एक डॉक्टर को और क्या चाहिए।
सरकारी अस्पताल में सेवा के लिए छोड़ दी पांच लाख रुपए की सैलरी
मेरी नजर में यदि प्रदेश को स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर करना है तो सरकार को चाहिए कि वह अच्छी सैलरी पैकेज पर देश के नामी विशेषज्ञों की सेवाएं अपने नागरिकों तक पहुंचाए। एक सर्जन होने के बाद भी मेरी सैलरी एक शिक्षक के बराबर है। मैं अपनी 5 लाख रुपए की नौकरी छोड़कर सिर्फ अपने लोगों की सेवा करने आया। यदि इतने त्याग के बाद भी मेरा बच्चा लोन लेकर पढ़े तो क्या फायदा।
खुद को नहीं आंकना कमतर
हिंदी मीडियम से पढ़कर खुद को कमतर आंकने वाले स्टूडेंट से कहना चाहता हूं कि पहले तो यह समझ जान लीजिए कि हिंदी मीडियम से पढऩे और अंग्रेजी नहीं जानने का कतई भी यह मतलब नहीं है कि आप लाइफ में कुछ अचीव नहीं कर पाएंगे। मैंने 8वीं तक की पढ़ाई कचांदुर शासकीय स्कूल से पूरी की है। 9वीं में दुर्ग आया। हिंदी मीडियम स्कूल में पहले सिर्फ एक ही विषय लेना होता था, लेकिन मैंने गणित के साथ बायोलॉजी का चुनाव किया। आज एक सफल सर्जन बनकर लोगों की सेवा कर रहा हूं।

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