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भिलाई

CG पुलिस को पहली बार मिलेगा गेंदू, बैजू, भूरी और गुड्डी का साथ, पढि़ए कैसे 7 वीं बटालियन में 22 नन्हें खोजी कुत्ते ले रहे कड़ी ट्रेनिंग

नेहरू नगर स्थित 7 वीं बटालियन में डॉग्स प्रशिक्षण केंद्र के 22 छोटे डॉग्स को खोजी बेड़े में शामिल करने के लिए तैयार किया जा रहा है। खास बात यह है कि सभी डॉग्स का नामकरण छत्तीगढ़ी भाषा में प्रचलित नामों के आधार पर किया गया है।

भिलाईDec 23, 2019 / 11:09 am

Dakshi Sahu

CG पुलिस को पहली बार मिलेगा गेंदू, बैजू, भूरी और गुड्डी का साथ, पढि़ए कैसे 7 वीं बटालियन में 22 नन्हें खोजी कुत्ते ले रहे कड़ी ट्रेनिंग

CG पुलिस को पहली बार मिलेगा गेंदू, बैजू, भूरी और गुड्डी का साथ, पढि़ए कैसे 7 वीं बटालियन में 22 नन्हें खोजी कुत्ते ले रहे कड़ी ट्रेनिंग

बीरेंद्र शर्मा @भिलाई. नेहरू नगर स्थित 7 वीं बटालियन में डॉग्स प्रशिक्षण केंद्र के 22 छोटे डॉग्स को खोजी बेड़े में शामिल करने के लिए तैयार किया जा रहा है। जैसे-जैसे ये बड़े होंगे उनको उसी हिसाब से प्रशिक्षण दिया जाएगा। अभी प्रारंभिक प्रशिक्षण में खाने पीने, उठने बैठने, सोने के तौर-तरीके के साथ नित्यक्रिया के तरीके सिखाए जा रहै हैं। इन 22 डॉग्स का प्रजनन इसी प्रशिक्षण केंद्र में हुआ है। ये कुत्ते अभी 55 दिन के हो गए है। खास बात यह है कि सभी डॉग्स का नामकरण छत्तीगढ़ी भाषा में प्रचलित नामों के आधार पर किया गया है। (chhattisgarh police dog squad )
नाम पुकारते ही आते हैं दौड़कर
इन नन्हें खोजी डॉग्स (sniffer dogs ) का नाम गेंदू, बुधारू, बादल, राणा, बिंदु, जयंती, बैजू, इंदू, भूरी, सीमा, सुजाता, दुलार, बिमला, प्रतिमा, खेमू, गुड्डी, ओमू, चम्पा, लाली, दिशा, भूक और जेनी रखा गया है। इसमें नर मादा दोनों के नाम है। पहली बार छत्तीसगढ़ी में नाम दिया गया है।
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घंटी बजते ही अलसुबह उठ जाते हैं
ट्रेनर प्लाटून कमांडर सुरेश कुशवाहा ने सुबह 4.50 बजे घंटी बजते ही सभी उठ जाते है। फिर 5 बजे बैरेक से बाहर निकाला जाता है। उसके बाद 7 बजे तक प्रैक्टिस कराई जाती है। फिर उन्हें ब्रेकफास्ट में अंडा और दूध दिया जाता है। इसके बाद उनकी साफ सफाई की जाती है। उनकी रोज ग्रुमिंग परेड 11 बजे तक चलती है। फिर 11.30 बजे लंच हो जाता है।
छ: माह की ट्रेङ्क्षनग के बाद देंगे परीक्षा
प्रशिक्षण केंद्र के पुलिस अधिकारियों ने बताया इन डॉग्स को यहां छह से नौ महीने का कोर्स पूरा कराया जाएगा। फिर उनकी परीक्षा होगी। पास करने के बाद खोजी डॉग्स को सर्टिफि केट मिलेगा। ट्रेनिंग के बाद उन्हें नक्सल प्रभावित अलग-अलग हिस्सों में पुलिस और अर्धसैनिक बलों के साथ तैनात किया जाएगा। यहां से प्रशिक्षित खोजी डॉग वीआईपी सुरक्षा में ड्यूटी कर रहे हैं।
शासन को नहीं खरीदने पडं़ेगे खोजी डॉग्स
छत्तीसगढ़ का यह इकलौता केंद्र है, जहां जर्मन शेफर्ड, बेल्जियम शेफ र्ड और लैब्राडोर नस्ल के डॉग्स को ट्रेनिंग देकर खोजी डॉग्स बनाया जा रहा है। इसके पहले प्रदेश सरकार को खोजी डॉग्स को खरीदने में 7 लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते थे। अब शासन को खोजी डॉग्स खरीदने के लिए रकम नहीं खर्च करनी पड़ेगी। इन डॉग्स को ट्रेनिंग देकर ट्रेकर, नार्कोटिक्स ट्रेकिंग, चोरी, लूट, डकैती और हत्या जैसे वारदात में मदद ली जाएगा। कमांडेंट 7 वीं बटालियन भिलाई, विजय अग्रवाल ने बताया कि छत्तीसगढ़ पुलिस की आवश्यकताओं के साथ ट्रेनिंग जा रही है। इस वर्ष पहली बार क्रॉस ब्रीडिंग कराया गया। जिसमें 22 खोजी डॉग्स का जन्म हुआ है। अब उन्हें प्रशिक्षण दिया जा रहा हैं। इसके बाद अलग-अलग जिलों में तैनात किया जाएगा।
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ऐसी है नन्हें खोजी कुत्तों की दिनचर्या

शाम 4 बजे फिर निकाला जाता है बैरक से बाहर
शाम 4 बजे फिर उन्हें बैरेक से निकाला जाता है। सभी 7 बजे तक ग्राउंड में खेलते है। साथ ही ट्रेनिंग दी जाती है। 7.30 बजे उनका डिनर रहता है। खाने में उबला चिकन, मीट और चावल हल्का भोजन दिया जाता है। रात 8 बजे अपने-अपने कमरे में सोने के लिए चले जाते है।
यह केन्द्र किसी आवासीय स्कूल से कम नहीं है। यहां सब कुछ नियम-कानून के मुताबिक चलता है। सुबह नींद से जागने, दोपहर शाम का खाना और रात को सोने का समय तय है।
6 महीने तक इन डॉग्स को यहां विस्फ ोटक सामग्री को सूंघ कर पहचानने, किसी व्यक्ति के बेहोश होने पर उसे कृत्रिम श्वास देने, खोई हुई वस्तु को तलाशने,नक्सली क्षेत्र में रखे बम को सूंघ कर पहचानने और भीड़ में वीआईपी की सुरक्षा करने जैसी ट्रेनिंग दी जाती है।

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