मालीपुरा गांव के 65 वर्षींय गोकलेश शर्मा बताते हैं कि मालीपुरा गांव में आजादी से पहले मुस्लिम निवास करते थे। आजादी के बाद यहां से इनका पलायन हो गया। इसके बाद यहां हिन्दू परिवार आकर बस गए। इस स्थान पर पहले चारों ओर पानी भरा था और झाड़ियां खड़ी थीं। इसके समीप ही रेल की पटरी थी। शर्मा बताते हैं कि करीब 70 साल पहले एक 12 वर्षीय बालक यहां आया, जो बाद में नागा साधु ब्रह्मचारी अयोध्या दास बाबा के नाम से जाना गया।
बाबा ने इस स्थान को देखकर यहां पर काम शुरू कर दिया। उस बालक ने आसपास के किसान से कुदाल-फावड़ा व परात लेकर सफाई करना शुरू कर दिया। आसपास के लोगों व रेलवे कर्मचारियों के सहयोग से इस स्थान को पूरी तरह साफ किया गया।
ग्रामीणों ने देखा एक बालक दिनभर यहां काम करता रहता है। उसके पास खाने-पीने को कुछ भी नहीं है। इस पर ग्रामीणों ने बालक के खाने की व्यवस्था की। इसके बाद यहां सहयोग मिलता चला गया और यहां मंदिर बन गया। पटरी के समीप होने के कारण इन्हें रेल वाले हनुमान मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इंजन से डिब्बा हो गया दूर
दर्शनार्थी विष्णु शर्मा ने बताया कि हम मन्दिर में भजन कर रहे थे। 1968 में गंगापुर से रेल चली, इसका स्टॉपेज सेवर पर था, लेकिन वहां पर उस दिन सिग्नल नहीं मिलने से रेल नहीं रुकी। गाड़ी में दर्शनों के लिए श्रद्धालु बैठे थे। जैसे ही रेल वाले हनुमान जी के सामने ट्रेन आई, तभी इंजन डिब्बों से अलग हो गया, जब तक इंजन डिब्बों से जुड़ा तब तक श्रद्धालुओं ने हनुमानजी के दर्शन किए व प्रसाद लगा लिया। इससे पहले बाबा अयोध्या दास ने वहां पर श्रद्धालुओं से कहा था कि रेल रुकेगी पानी की व्यवस्था कर लो।
कई साल निकली शोभायात्रा
1975 मे नागा साधु ब्रह्मचारी अयोध्यादास बाबा ने गांव वालों के सहायोग से कई साल तक हनुमान जयंती पर शोभायात्रा निकाली थी। साथ ही मंदिर पर भंडारे का आयोजन किया जाता था। बाद में यह शोभायात्रा बंद हो गई।
चलती रेल से पत्र लिखकर लगाते हैं अर्जी
रेल वाले हनुमानजी पर श्रद्धालु चलती ट्रेन से अर्जी लगा जाते हैं। गोकलेश शर्मा ने बताया कि यात्री चलती ट्रेन से समस्याओं की चिट्ठी लिखकर चलती ट्रेन से मंदिर परिसर में फेंककर चले जाते हैं। इन पत्रों में किसी के ट्रांसफर की समस्या होती है तो किसी की बेटी की शादी कराने की मनौती मांगी जाती है। शर्मा बताते हैं कि श्रद्धालुओं की मनौती पूरी होने पर वह यहां दर्शन करने आते हैं।