सुनीता का आरोप मांगे 10 हजार पीडि़त सुनीता का आरोप है कि आरबीएम अस्पताल में उससे पैर के ऑपरेशन के लिए दस हजार रुपए मांगे। साथ ही यह डर भी बताया गया कि उसका पैर काटना पड़ सकता है। हालांकि यह बातें अस्पताल प्रशासन की ओर से न कहकर किसी अन्य व्यक्ति ने कही थी। इसके चलते सुनीता बेहद डर गई और उसने कर्ज लेकर भी अपना उपचार निजी अस्पताल में कराना बेहतर समझा। सुनीता ने बताया कि निजी अस्पताल में उसके पैर का ऑपरेशन 22 हजार रुपए में हुआ है। साथ ही करीब पांच हजार रुपए उसने ब्लड के दिए। छुट्टी होने के दौरान निजी अस्पताल की ओर से 2100 रुपए की दवा का पर्चा दिया गया। सुनीता ने बताया कि इस रकम का इंतजाम उसने अपने भांजे को गहने गिरवी रखकर किया है। उसने बताया कि उसने अपनी चांदी की सांठ (पैरों में पहनने वाली), पायजेब एवं कौंधनी करीब 25 हजार रुपए में गिरवी रखीं। इसके बाद उसका उपचार हुआ।
अब अस्पताल प्रशासन डाल रहा लापरवाही पर पर्दा पीडि़ता सुनीता की कराह की अनसुनी करने वाला अस्पताल प्रशासन अब सरकार की तिरछी नजर से खुद को बचाने की फिराक में है। तीन दिन में ही अस्पताल प्रशासन ने खुद ही मामले की जांच कर क्लीन चिट ले ली है। अस्पताल प्रशासन की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि मरीज के बाएं पैर में कम्पाउंड फ्रेक्चर था। साथ ही जांघ पर बड़ा घाव था। सड़क दुर्घटना का मामला होने के कारण घावों पर मिट्टी लगी थी। ऐसे में तुरंत ऑपरेशन से हड्डियों में संक्रमण का खतरा हो सकता था। अब सवाल यह है कि निजी अस्पताल में फिर उसका ऑपरेशन कैसे हो गया। आरबीएम अस्पताल प्रशासन का प्लान गुरुवार को ऑपरेशन करने का था, जबकि सुनीता निजी अस्पताल में ऑपरेशन कराकर छुट्टी भी ले चुकी है। उल्लेखनीय है कि सुनीता के पैर में दो रॉड डाली गई हैं।
हकीकत ये…यहां दोषियों को ही मिलता है जांच का जिम्मा बात चाहे किसी सरकारी अस्पताल में टॉर्च की रोशनी में ऑपरेशन की हो या किसी अस्पताल में बधाई के नाम पर रिश्वत मांगने की, हकीकत यह है कि हरेक प्रकरण में दोषियों को ही जांच का जिम्मा सौंपा जाता है। दबाव में आकर दोषियों को क्लीन चिट भी मिल जाती है। हकीकत यह है कि तमाम सरकारी अस्पतालों में कमीशनबाजी के चलते डॉक्टरों के निजी नर्सिंग होम में ऑपरेशन कराने के लिए विजिटंग कार्ड तक अस्पतालों में बंटते हैं। यही कारण है कि अस्पताल में व्यवस्थाओं को सुधारने का दावा करने वाले अफसर भी हकीकत जानकर भी अनजान बने रहते हैं। यहां कभी-कभार बड़ा मामला सामने आने पर बड़े प्रशासनिक अधिकारी निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति करने के लिए दौड़ चले आते हैं और एक-दो दिन में व्यवस्थाओं को सुधारने का दम तक भरते हैं, लेकिन फिर भूल जाते हैं। इसी कारण जनाना अस्पताल, आरबीएम अस्पताल समेत जिले के तमाम अस्पतालों में इस तरह की समस्याएं सामने आती रही है। प्रत्येक मामले में कारण होते हुए भी आसानी से क्लीन चिट देने की परंपरा भी बनी हुई है।
इनका कहना है पैसे वगैरह मांगने के आरोप निराधार हैं। हमने मामले की वास्तविक जांच कराकर रिपोर्ट जिला कलक्टर को सौंप दी है।
– डॉ. के.सी. बंसल, कार्यवाहक पीएमओ आरबीएम अस्पताल भरतपुर