यूं ही नहीं छोड़ी गई खादी की जमीन यूआईटी ने सेक्टर 13 जैसी महत्वकांक्षी योजना में पहले खादी समिति की जमीन को एक्वायर कर लिया। इसके बाद सक्रिय हुए भूमाफिया की बदौलत यह जमीन यूआईटी ने यह कहकर छोड़ दी कि यह जमीन निम्न आय वर्ग की है, जबकि खादी की करीब 40 बीघा से अधिक जमीन में से महज 10 बीघा जमीन पर ही खादी कार्मिकों को प्लॉट मिले होंगे। खास बात यह है कि जिस जमीन को यूआईटी निम्न आय वर्ग की बता रही है, उस समिति का सालाना टर्न ओवर करीब एक करोड़ रुपए का है और समिति करीब 50 करोड़ की अचल संपत्ति की मालिक भी है। ऐसी स्थिति में जमीन को छोडऩा मिलीभगत की ओर इशारा कर रहा है। खास बात यह है कि कुछ जमीन तो अप्रवासी भारतीय के नाम भी चढ़ गई है।
एससी वर्ग के नाम बोल रही जमीन हाइवे के आसपास की जमीन जिस जमीन पर आज आलीशान बिल्डिंग, मैरिज होम और फॉर्म हाउस बने हुए हैं। वह जमीन पिछले 50 साल से काश्तकारों के नाम बोलती रही है। ऐसे लोगों को खातेदारी का राइट्स भी मिला हुआ है। इसके बाद भी रसूखदारों पर जमीन होना यूआईटी प्रशासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर रहा है। एक मामले में तत्कालीन एसडीएम की ओर से हरफूल नाम के व्यक्ति को खातेदारी के राइट्स भी दिए गए हैं। इसके बाद रेवन्यू बोर्ड एवं संभागीय आयुक्त कार्यालय में राजीनाम रसूखदारों के पक्ष में पेश हुआ है। ऐसे में यह संदेह के दायरे में है।
डिक्री कराकर किया जमीन का खेल आजादी से पहले यह जमीन एक व्यक्ति के नाम गैर खातेदार दर्ज थी। इस व्यक्ति के वारिसों की ओर से भू माफिया दावा करते गए और डिक्री कराकर जमीन के जरिए काली कमाई का खेल खेलते रहे। खास बात यह है कि जिन लोगों के नाम से दावे किए गए वह दो जून की रोटी के लिए भी मोहताज बताए गए हैं। इनमें अभी यहां एसडीएम के यहां केस पेंडिंग है। खास बात यह है कि अफसरों की मेहरबानी के चलते इस जमीन पर भू माफिया राज पनप रहा है। अहम बात यह है कि यूआईटी ने जमीन तो खातेदारों के नाम चढ़ा दी, लेकिन उन्हें अभी तक अवार्ड नहीं मिल सका है।
इनका कहना है छुट्टी होने के कारण मैं फाइल नहीं देख सका। सोमवार को देख कर बताऊंगा। – केके गोयल, कार्यवाहक सचिव यूआईटी