जानकारी के अनुसार गांव पथैना निवासी बृजेन्द्र उर्फ बिज्जो एवं मोहन पक्ष में पिछले कुछ सयम से रंजिश चल रही है। इसको लेकर गुरुवार को दोनों पक्ष आमने-सामने हो गए। झगड़े के दौरान दोनों पक्ष के लोग सड़क पर आकर एक-दूसरे पर फायरिंग करने लगे। करीब दस मिनट तक फायरिंग हुई। इसके चलते लोग घरों में दुबक गए और मकानों के किबाड़ बंद कर लिए।
फायरिंग के दौरान गोली लगने से बृजेन्द्र उर्फ बिज्जो (55) पुत्र महेन्द्र सिंह, हेमेन्द्र उर्फ हेमू (32) पुत्र बृजेन्द्र एवं किशन (25) पुत्र बृजेन्द्र की मौत हो गई। किशन भरतपुर में आरएसी में तैनात था। झगड़े में यदुराज पुत्र बृजेन्द्र घायल हो गया, जबकि दूसरे पक्ष का सतेन्द्र पुत्र मोहन सिंह एवं धर्मेन्द्र पुत्र मोहन सिंह घायल हो गए। घायल यदुराज पुलिस डीएसटी में मेवात में तैनात है।
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सूचना मिलते ही भुसावर थाना पुलिस मय जाप्ते के मौके पर पहुंची और एम्बुलेंस की मदद से भुसावर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर भर्ती कराया, जहां से परिजन घायलों को उपचार के लिए भरतपुर ले गए। घायलों का भरतपुर के आरबीएम अस्पताल में उपचार चल रहा है।
गांव में तनाव की स्थिति को देखते हुए हलैना, नदबई सहित कई थानों का जाप्ता तैनात किया गया है। गांव में फायरिंग में तीन लोगों की मौत के बाद सन्नाटा पसरा पड़ा है। सूचना मिलने पर आईजी भरतपुर, पुलिस अधीक्षक श्याम सिंह, भुसावर सीओ निहाल सिंह सहित अन्य पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए। मृतक हेमेन्द्र के एक बेटा एवं बेटी है, जबकि किशन की शादी करीब एक वर्ष ही हुई है।
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गांव रुतबा दिखाने की होड़
जानकारी के मुताबिक दोनों ही परिवारों में एक-दूसरे से बड़ा दिखने की होड़ सी थी। रुतबे को लेकर ही इनमें तू-तू, मैं-मैं हुई। खास बात यह है कि दोनों में न तो कोई जमीनी विवाद था और न ही अन्य कोई झगड़े की वजह थी। दोनों परिवार मध्यमवर्गीय ही हैं, लेकिन बृजेन्द्र के परिवार में से दो बेटा एवं एक बहू की सरकारी नौकरी लग गई। यदुराज की पत्नी सरकारी शिक्षक हैं।
करवा चौथ के दिन उजड़ गए सुहाग
करवा चौथ पर्व को लेकर बृजेन्द्र पक्ष की महिलाएं अपने पतियों की सलामती के लिए प्रार्थना कर रही थीं। इसको लेकर घर में खुशियों का माहौल था। दीर्घायु के लिए महिलाओं ने व्रत भी रखा, लेकिन उन्हें इल्म भी नहीं था कि उनके पतियों की जिंदगी करवा चौथ पर ही खत्म हो जाएगी। गांव में भी त्योहार की खुशियां फीकी हो गईं। अन्य घरों में भी करवा चौथ का पर्व महज खानापूर्ति बनकर रह गया। तीन जनों की मौत के बाद गांव में मातम छाया रहा।