बैतूल जिले के घोड़ाडोंगरी ब्लॉक में स्थित बाचा गांव की पहचान पूरे इलाके में एक खास वजह है। पर्यावरण दिवस के मौके पर इस गांव की चर्चा पूरे देश में हो रही है। क्योंकि यह गांव भारत के अन्य गांवों से अलग है। यहां बल्ब जलते हैं, पंखा चलता है, टीवी चलता है लेकिन ये सब बिजली से नहीं सौर उर्जा से होता है। आईआईटी मुंबई ने इस गांव को सोलर विलेज बनाया है।
एक घर में सोलर यूनिट और चूल्हे लगाने में अस्सी हजार रुपये की लगात आई है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि अगर ज्यादा ऑर्डर आएं तो लागत कम हो सकती है। इस चूल्हे से पांच सदस्यीय परिवार में एक दिन में तीन बार खाना बनाया जा सकता है। बाचा गांव में सभी चूल्हे नि:शुल्क लगाए गए हैं। सौर उर्जा से चलित चूल्हे की सोलर प्लेट से 800 वोल्ट बिजली बनती है। इसमें लगी बैटरी में तीन यूनिट बिजली स्टोर रहती है।
बाचा गांव के ग्रामीणों ने कहा कि अब हमें जंगल लकड़ी के लिए नहीं जाना पड़ता है। न ही आग बुझाने के लिए समय बिताना पड़ता है। बर्तन और दीवारें अब काली नहीं होती हैं। भोजन भी समय पर पकाया जाता है। इससे समय की बचत होती है।