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बस्तर

बेबस पिता बीमार बेटी को इलाज के लिए कंधे पर बिठाकर पहुंचा 10 किमी दूर हास्पिटल

नहीं लगता है स्वास्थ्य शिविर, बुखार से पीडि़त बच्ची की बिगड़ती जा रही थी हालत, नहीं है वाहन की सुविधा, नेटवर्क नहीं होने से एंबुलेंस भी नहीं मिली।

बस्तरNov 02, 2017 / 07:45 pm

ajay shrivastav

मासूम की हालत खराब हुई तो नहीं बचा कोई दूसरा रास्ता

मासूम की हालत खराब हुई तो नहीं बचा कोई दूसरा रास्ता

मासूम की हालत खराब हुई तो नहीं बचा कोई दूसरा रास्ता
ईश्वर सोनी / बीजापुर. जिला मुख्यालय के धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र में घर पर चार दिन से बुखार से बेटी तड़प रही थी। पर इलाज के लिए अस्पताल दस किमी दूर था। गांव में वाहन की भी सुविधा नहीं थी। ऐसे में मजबूर पिता ने अपनी बेटी को कांधे पर उठा लिया और फिर दस किमी सफर कर आवापल्ली के अस्पताल में उसका इलाज करवाया। रास्ते में पत्रिका संवाददाता से हुई मुलाकात में उसने पूरा वाकया सुनाया। मामला धुर माओवाद प्रभावित क्षेत्र उसूर के गुल्लावांगु का है।

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इलाज के अभाव में बढ़ता गया बुखार
मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर उसूर ब्लाक के गुल्लावांगु की 11 साल की मासूम ताती सरिता आवापल्ली के पोटाकेबिन में पांचवीं में पढ़ती है। दीपावली की छुट्टियों में वह अपने गांव गुल्लावांगु गई हुई थी। पिछले चार दिन से वह बुखार से पीडि़त थी पर गांव में अस्पताल या चिकित्सकीय सुविधा नहीं होने से उसे इलाज नहीं मिल पा रहा था। लेकिन गांव में वाहन की सुविधा नहीं होने से अस्पताल ले जा पाना मुश्किल था। इस बीच इलाज नहीं होने से उसका बुखार बढ़ता ही गया।

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हालत खराब हुई तो नहीं बचा कोई दूसरा रास्ता
जब हालत बेहद खराब हो गई तो मजबूरन पिता ताती भीमा ने उसे अस्पताल ले जाने की सोची। लेकिन अस्पताल तक जाने न कोई वाहन थी न उसके पास साइकिल। गांव में नेटवर्क भी नहीं है कि फोन कर एंबुलेंस को भी बुलाया जा सके। आखिरकार उसने बीमार बेटी को कांधे पर अस्पताल ले जाना तय किया। दस किमी पैदल चलकर वह आवापल्ली अस्पताल पहुंचा।

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नहीं लगाया जाता स्वास्थ्य शिविर
वहां मौजूद अस्पताल के स्टाफ ने बेटी की जांच के बाद इलाज शुरू किया। भीमा ने बताया, गांव में यह समस्या आए दिन की है। गांव में स्वास्थ्य शिविर नहीं लगाया जाता जिससे की बीमार मरीज का इलाज कराया जा सके। इसमें भी लंबे सफर के बाद अस्पताल पहुंचने पर अस्पताल में डॉक्टर व स्टाफ नहीं मिलते।

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शिविर से ग्रामीणों को मिल सकेगा लाभ
रात के समय ज्यादा दिक्कतें होती है। सबसे ज्यादा समस्या प्रसव के दौरान होती है। धुर नक्सल प्रभावित क्षेत्र जहां पहुंचविहिन मार्ग है इन इलाकों में स्वास्थ्य शिविर की सुविधा मिलने से कई लोगों की जान भी बच सकती है, लेकिन शासन-प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं देता है। नक्सली इलाके का हवाला देकर कोई ग्रामीणों की सुध लेने नहीं पहुंचते हैं।

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