कुछ वर्ष पूर्व एकीकरण के चलते कस्बे, क्षेत्र के गांवों में बड़ी संख्या में विद्यालय बंद हुए थे। तब से आज तक ये विद्यालय तालों में कैद है। इनकी देखरेख तक नहीं की जा रही है। इस पर ये भवन अब बेसहारा पशुओं व समाजकंटकों की शरण स्थली बने हुए हैं। अधिकांश भवनों के मुख्य द्वार खुले होने पर बेसहारा पशु दिन में यहां सुस्ताते हैं। रात्रि में यहां समाजकंट एकत्रि हो जाते हैं। वहीं, शराबियों के लिए भी ये भवन आश्रय स्थल बन गए हैं। इस पर आस- पास के घरों के लोग डरे सहमे रहते हैं। उन्हें अनहोनी होने का डर सताता है।
उपयोग में आ सकते हैं भवन- इन भवनों को सरकारी विभागों व संस्थानों को देकर संरक्षण किया जा सकता है। शिक्षा विभाग की ओर कोई पहल नहीं की जा रही है। इससे लाखों रुपए के भवन रखरखाव अभाव में दुर्दशा के शिकार हो रहे हैं।
कौन करे पैरवी- इन भवनों के रख-रखाव या अन्य सरकारी विभागों को हस्तांतरित करने को लेकर पैरवी की जरूरत है। राज्य स्तर पर जनप्रतिनिधि पैरवी करे तो इसका समाधान निकल सकता है। बावजूद इसके कोई
ध्यान नहीं दे रहा। जिसके चलते लाखों रुपए की सरकारी सम्पत्ति रफ्ता-रफ्ता जर्जर हो रही है।
संरक्षण की दरकार – सरकार ने लाखों रुपए के भवन बनाएं हैं तो इनका संरक्षण भी करें। किराए पर दें, इससे कम से कम ये जर्जर तो नहीं होंगे। – जबरसिंह भाटी, केसरपुरा
भवन हो रहे जर्जर- संरक्षण के अभाव में भवन खस्ताहाल हो रहे हैं। बेसहारा पशुओं व समाजकंटकों का यहां जमावड़ा रहता है। सरकार इन्हें किराए पर दें। – मांगुखां तेली
ले सकते हैं
काम में- सूने पड़े भवनों को सरकार काम में ले सकती है। सरकारी विभाग, आंगनवाड़ी केन्द्रों को किराए पर दे सकती है। इससे सरकार को किराया मिलेगा व भवनों की देखरेख भी होगी। – मघाराम, बीईईओ पाटोदी