इस प्रकरण में परिवादी गणपतसिंह ने लोकायुक्त सचिवालय में भी परिवाद दिया था। दिशा निर्देशों की पालना नहीं होने पर 11 जुलाई को लोकायुक्त ने जिला कलक्टर बाड़मेर के नाम सम्मन जारी किया और आठ अगस्त को व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने को कहा। कलक्टर ने आश्वस्त किया कि बजट के लिए उच्चाधिकारियों को लिखा गया है, बजट प्राप्त होते ही फर्म का भुगतान कर दिया जाएगा, तब जाकर उन्हें व्यक्तिगत उपस्थिति से छुटकारा मिला।
एसडीएम की वजह से दो बार बजट लेप्स हुआ। कलक्टर की ओर से वित्त विभाग से बजट की विशेष मांग पर अगस्त के प्रथम पखवाड़े में यह राशि जयपुर से बाड़मेर को मिल गई। प्रशासन ने 11 अगस्त को ही फर्म को दी जाने वाली बकाया राशि 1,35,000 रुपए उपखण्ड अधिकारी बालोतरा को हस्तांतरित कर दी। इसके बावजूद एसडीएम ने फर्म के खाते में यह राशि हस्तांतरित करने में एक माह लगा दिया।
पत्रिका ने उजागर किया था मामला वर्ष 2014 व 2015 में उपखण्ड क्षेत्र बालोतरा में आयोजित होने वाले भामाशाह शिविरों में टेण्ट इत्यादि व्यवस्था के लिए मैसर्स पदमावती टेण्ट हाउस बालोतरा के नाम से टेण्डर हुआ। 71 ग्राम पंचायतों में हुए शिविरों में फर्म ने टेण्ट इत्यादि की व्यवस्था की। शिविर समाप्त होने के बाद फर्म ने ग्राम पंचायतों के सरपंचों से बिलों का सत्यापन करवाकर विकास अधिकारियों के मार्फत बिल उपखण्ड अधिकारी बालोतरा उदयभानु चारण को भिजवा दिए। एसडीएम ने 17 ग्राम पंचायतों के बिलों को भुगतान बिल में दर्शाई गई राशि के अनुसार फर्म को कर दिया, लेकिन 54 ग्राम पंचायतों के बिल में प्रति ग्राम पंचायत 2500 रुपए की कटौती कर शेष भुगतान फर्म को दे दिया। कटौती की कुल राशि 1,35,000 रुपए हुई। कटौती राशि के मामले में फर्म ने आपत्ति जताई, लेकिन एसडीएम नहीं माने। फर्म के प्रोपराइटर गणपतसिंह भाटी ने निदेशक एवं संयुक्त शासन सचिव आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय जयपुर, जिला कलक्टर, जिला भामाशाह अधिकारी के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किए और भुगतान दिलाने को कहा। इन अधिकारियों ने निर्देश दिए, लेकिन एसडीएम नहीं माने। भुगतान के लिए रिलीज हुई राशि दो बार लेप्स हो गई। दिसम्बर 2015 में गणपतसिंह ने राज. सम्पर्क पोर्टल पर परिवाद दर्ज करवाया। एसडीएम ने यहां पर भी सक्षम अधिकारियों के आदेशों की पालना नहीं की, जिस पर 24 मई को पोर्टल के सक्षम अधिकारी ने टिप्पणी की कि उपखण्ड अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए, उन्होंने राज. सम्पर्क पोर्टल को मजाक समझ रखा है। गौरतलब है कि 13 जून को राजस्थान पत्रिका ने राज. सम्पर्क पोर्टल को उपखण्ड अधिकारी ने मजाक समझ रखा है शीर्षक से समाचार प्रकाशित कर इस मामले को उजागर किया। आखिरकार 12 सितम्बर को उपखण्ड अधिकारी ने फर्म को 1,35,000 हजार रुपए का भुगतान किया।