भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश 1947 में आजाद हुए। भारत ने 26 जनवरी 1949 को बने भारत के संविधान ने भारतीय नागरिकों के मूल अधिकारियों की रक्षा की और उनके कर्त्तव्य भी बनाए। उधर, पाकिस्तान में लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन आम बात है। अल्पसंख्यक हिन्दू, सिक्ख और ईसाइ परिवारों के लिए तो अब अत्याचार सहना नियती बनने लगा है। ऐसे दौर में पाकिस्तान में बसे हिन्दू परिवारों का भरोसा भारत में और भी प्रगाढ़ है। वे खुद तो भारत आकर नहीं बस पा रहे है लेकिन जैसे ही परिवार की बेटी के सुख का चुनना होता है वे भारत पर भरोसा करते है। अपनी बेटी का ब्याह भारत में कर रहे है।
दलित बेटियों के लिए जीना मुश्किल
पाकिस्तान में दलित परिवारों की बेटियों के लिए कई इलाकों में जीना मुश्किल हो गया है। धर्मांतरण का दबाव बनने लगा है। अपहरण होने लगे हैं। सयानी बेटी होने पर माता-पिता के सामने मुश्किलें हैं। ये परिवार भी अब भारत में ही आकर अपनी बेटियों का विवाह करना चाहते हैं। मुश्किल यह है कि इन गरीब परिवारों के लिए भारत आने का आसान रास्ता मुनाबाव बंद है। हर साल आती है पंद्रह-बीस बेटियां
सरहदी बाड़मेर-जैसलमेर में हर साल पंद्रह- बीस बेटियों की शादी राजपूत, माली, दलित व अन्य परिवारों में हो रही है। पूर्व में यहां आकर बसे रिश्तेदारों से संपर्क है। इनके जरिए पाकिस्तान में रिश्ते हो रहे हैं। शादी के बाद बहू को वीजा पर लाया जाता है। इसके बाद उसको नागरिकता मिल रही है।
पाकिस्तान में विवाह नहीं करते भारत की बेटी का
भरोसे और विश्वास को इस तरह भी समझें कि भारत से बेटी का विवाह पाकिस्तान में करने के उदाहरण नगण्य है। पाकिस्तान बसे परिवार भी इसके पक्ष में कम ही है। वे जानते हैं कि भारत में सुखी जीवन है।
भरोसा करते हैं
मेरा विवाह पाकिस्तान में हुआ। परिवार की पहले से रिश्तेदारी है। आज भी हम लोग रोटी-बेटी के रिश्ते से जुड़े हुए है। भारत पर अटूट भरोसा किया जा रहा है। यहां बेटी सुखी रहेगी यह उन्हें पता है। इस इत्मीनान के साथ भी है कि माहौल बहुत बढ़िया है। विक्रमसिंह, बईया