दूसरी नृत्य विधा के अंतर्गत बारां जि़ले के सहरिया नृत्य के कलाकारों ने अपनी कला का परिचय दिया । अपने पारंपरिक वाद्य यंत्रों की मोहक धुनों पर घास फ ूस के कपड़ों में थिरकता जंगल बच्चों को खूब रास आया । आदिवासी नृत्य की मासूम और निश्छल अदाओं ने सभी को मन्त्र मुग्ध कर दिया । नृत्य निदेशक गोपाल ने बताया सहर का मूल अर्थ जंगल है और यह आदिवासी जीवन व्यतीत कर रहे लोगों का नृत्य हैं जो आजकल मध्यप्रदेश और राजस्थान में भील समुदाय यह नृत्य करता हंै। उन्होने बताया हम रामायण आदि के प्रसंग भी करते हैं क्योंकि हम शबरी से अपना जुड़ाव मानते हैं । इस अवसर पर स्टार्स के अध्यक्ष दिलावर खान और सचिव दीन मोहम्मद ने बच्चों को लोक कला और कलाकारों के बारे में बताया । धन्यवाद ज्ञापन स्कूल प्राचार्य नवनीत पचौरी ने किया। लावणी के कलाकारों ने प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए शृंगार लावणी के आकर्षक रूप को पेश किया । नौ गज की साड़ी पहनकर द्रुत संगीत पर नृत्यांगनाओं की अदाएं देखते ही बनती हैं । अपनी बांकी अदाओं और भाव भंगिमाओं से सभी का दिल जीतने वाली इस टोली ने बच्चों के सवालों का जवाब दिया ।