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बाड़मेर

दिहाड़ी मजदूर झेल रहे बेगारी का दंश

– गांवों में काम ना शहरों में रोजगार, मजदूर परेशान
– बारिश के अभाव में खेती में नहीं जरूरत

बाड़मेरAug 06, 2021 / 12:18 am

Dilip dave

दिहाड़ी मजदूर झेल रहे बेगारी का दंश

दिहाड़ी मजदूर झेल रहे बेगारी का दंश

बाड़मेर. कोरोना ने दिहाड़ी मजदूरों को बेगारी का दंश सहने को मजबूर कर दिया है। शादियों के सीजन में काम नहीं मिला तो कोरोना लॉकडाउन के चलते शहरों में निर्माण कार्य बंद हो गए।

रही-सही कसर बारिश की कमी ने पूरी कर दी। बारिश के अभाव में खेतों में भी काम नहीं है। इस पर दिहाड़ी मजदूरों के लिए परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा है। स्थिति यह है कि काम नहीं मिलने पर अब मजदूर शहर आने से भी कतरा रहे हैं और घरों में बेकार बैठे हुए हैं।
थार नगरी बाड़मेर आसपास के गांवों के लोगों को रोजगार देने का कार्य करती है। यहां सुबह होते ही करीब पचास गांवों से हर दिन तीन-चार हजार मजदूर दिहाड़ी मजदूर के लिए आते हैं। इन मजदूरों में से अधिकांश निर्माण कार्य जिसमें हमाली, कमठा मजदूरी, कारीगरी आदि का काम करते हैं।
इनको कोरोनाकाल से पहले कार्य मिल रहा था, लेकिन कोरोना की दूसरी लहर का असर हुआ तो लॉकडाउन को लेकर पाबंदियां लग गई जिस पर शहर में काम बंद हो गया।

इधर, शादी समारोह स्थगित हुए तो टेंट मजदूर भी बेकार हो गए। करीब तीन माह तक यह स्थिति रही जिसके बाद सरकार ने पाबंदी तो हटा दी, लेकिन कोरोना के चलते मंदी की मार बाजार पर पड़ी जिसका असर निर्माण कार्यों पर हुआ और कमठा मजदूरी कम हो गई। एेसे में गांवों से आने वाले मजदूरों को रोजगार भी नहीं मिल रहा। स्थिति यह है कि अधिकांश कमठा मजदूर अब शहर आ ही नहीं रहे।
बारिश ने भी दिया दगा, बेगारी बढ़ी- इधर, बारिश ने भी कमठा व दिहाड़ी मजदूरों की किस्मत पर कुठाराघात किया है। अमूमन जून-जुलाई में बारिश होने पर खुद के खेतों या आसपड़ोस में काम मिल जाता है, लेकिन इस बार बारिश नहीं होने से अधिकांश गांवों में खेतों की जुताई हुई नहीं है। एेसे में गांवों में भी रोजगार नहीं मिल रहा।
गुजरात की राह और दूसरे काम धंधे- कमठा मजदूरी में कमी आने पर ग्रामीण इलाके से मजदूर गुजरात जा रहे हैं। वहां रोजगार मिलने की उम्मीद है। वहीं, दूसरे धंधे पकड़ रहे हैं जिसमें कोई खलासी का काम कर रहा है तो किसी ने चौकीदारी शुरू की है। घर का चूल्हा चौका चलाना मुश्किल- दिहाड़ी मजदूरों का दर्द यह है कि रोजगार नहीं मिलने पर वे अब काम करे तो भी क्या, विशेषकर वे जो एकल परिवार के हैं जो बच्चों को छोड़ अन्यत्र काम पर जा नहीं सकते और बाड़मेर में काम नहीं मिल रहा। एेसी स्थिति में घर का चूल्हा चौका चलाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है। उधारी के भरोसे काम चल रहा है।
लम्बे समय से काम नहीं- पहले तो टेंट, कमठा कार्य पर मजदूरी मिल जाती थी, लेकिन अब शहर में निर्माण कार्य कम हो रहे हैं, जिस पर कार्य नहीं मिल रहा। लम्बे समय से काम नहीं मिलने से घर चलाना मुश्किल हो रह है।- एहसानखां, दिहाड़ी मजदूर
एक-एक दिन भारी- बिना काम के बैठे रहना भारी पड़ रहा है। बारिश नहीं होने से खेत भी सूने हैं तो शहर में रोजगार नहीं। एक-एक दिन भरी पड़ रहा है।- बाबूराम, दिहाड़ी मजदूर
सरकार करे प्रबंध- सरकार को एेसा कोई प्रबंध करना होगा जिससे कि दिहाड़ी मजदूरों को संबंध मिले। अब काम नहीं होने स घर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है।– लक्ष्मण बडेरा, जिलाध्यक्ष कमठा मजदूर यूनियन बाड़मेर

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