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Barmer News: आपके बच्चे के हाथ में है मोबाइल तो हो जाएं सावधान, कई घर हो चुके हैं बर्बाद

Online Gaming: लोकलाज के चक्कर में मां-बाप आपबीती साझा नहीं कर रहे, पुलिस भी मुश्किल में

बाड़मेरOct 01, 2024 / 11:35 am

Rakesh Mishra

online gaming addiction
Online Gaming: ऑनलाइन गेमिंग के खतरनाक नतीजे सामने आने लगे हैं। इसकी कानूनी मान्यता पर बहस के बीच स्कूली छात्र व युवा इसके शिकार हो रहे हैं और खामियाजा परिवार को भुगतना पड़ रहा है। हाल ही में एक मामले में बच्चे ने ऑनलाइन गेमिंग के चक्कर में घर के गहने तक बेच डाले। मामला सामने आने के बाद मुद्दा गर्म हो गया। मां-बाप लोकलाज के चक्कर में आपबीती किसी से साझा नहीं कर रहे हैं। इससे बिगड़े बच्चे और बिगड़ रहे हैं। अब पुुलिस की सलाह भी यही है कि खुद परिजन बच्चों पर नजर रखें।
इस पर अधिवक्ता हेमंत नाहटा ने बताया कि ऑनलाइन गैंबलिंग को बैन करने का परोक्ष कानून नहीं है, लेकिन तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ने इसे प्रतिबंधित किया है। आईपीसी में धोखाधड़ी, एक्स्ट्रोर्शन की धाराएं, पब्लिक गैंबलिंग एक्ट, आइटी एक्ट तथा मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट सहित कई अधिनियम ऐसे हैं। जिनमें कुछ सीमा तक ऑनलाइन गेमबलिंग को प्रतिबंधित किया हुआ है। गेम ऑफ स्किल है तो ऑनलाइन गेम खेलना अपराध नहीं है। मगर इनाम की राशि के लिए कोई गेम की ओर आकर्षित होता है तो वह गैर कानूनी है। इन दोनों स्थितियों के बीच बारीक कानूनी अंतर को प्रभावी तरीके से लागू करने की पुलिस की क्षमता बढ़ाई जानी चाहिए।

पिता के बैंक खाते से दस लाख उड़ाए

बाड़मेर निवासी एक व्यवसायी का पुत्र आदित्य (परिवर्तित नाम) ऑनलाइन गेम की लत में फंस गया। शुरुआत में उसने अपने पिता के बैंक खाते से करीब दस लाख रुपए निकाल लिए और गेम में लगा दिए। जब पिता को इसकी भनक लगी तो बेटे को समझाया, लेकिन वह गेम व कर्ज से बाहर नहीं निकल पाया।

दोस्तों से लिया तीन लाख रुपए का कर्ज

बाड़मेर शहर की अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ने वाला छात्र ऑनलाइन गेम में फंस गया। कई गेम खेले और पैसे डूबते रहे। छात्र नाबालिग है। अब उसने तीन लाख रुपए दोस्तों से कर्ज पर लिए। घर से हर माह खर्ची मिलती है, उससे ब्याज चुका रहा है।

शौक लगा तो घर से गहने चुरा लिए

बाड़मेर के प्रतिष्ठित व्यापारी का नाबालिग बच्चा प्रवीण (परिवर्तित नाम) ऑनलाइन गेम के बाद ऐशो-आराम की जिंदगी जीने लग गया। अब जब लग्जरी कारों में घूमने का शौक लगा तो घर में रखे गहने भी चुरा लिए। जब परिजनों को भनक लगी तो पता चला कि बच्चा तो ऑनलाइन गेम व मौज की जिंदगी के लिए ऐसा कर रहा है।

यह भी एक तरह का मनोरोग

ऑनलाइन गेम भी एकतरह का मनोरोग है। किसी भी खेल में दिलचस्पी बढ़ने की वजह रुचि का मानसिकता पर हावी होना है। गेम बनाने वाले ऐप अच्छी तरह से जानते हैं कि उनका निशाना 14 से 30 साल तक के आयुवर्ग का दिमाग हैै। यह ऐप जान लेते हैं कि ग्राहक पहली बार आया है। उसको लालच देने को छोटी-छोटी जीत का नशा देते हैं। फिर एक हार और फिर जीत। बस महीनेभर के इस सिलसिले बाद ‘लूट’ शुरू होती है। इसलिए जरूरी है कि बच्चों पर ध्यान रखें। गेमिंग ऐप उनके मोबाइल से हटा दिए जाएं।
  • गोविंदकृष्ण व्यास, मनोवैज्ञानिक
10वीं तक के बच्चों को मोबाइल नहीं देना चाहिए। स्कूलों में भी मोबाइल बैन हो। जालसाज मोबाइल पर कॉल कर डिजिटल अरेस्ट तक की वारदात कर रहे हैं। इससे भी उनका सेक्सुअल हरेसमेंट किया जा रहा है।
  • नाजिम अली, एएसपी, त्वरित अनुसंधान सैल, बाड़मेर
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