गंगा दशहरा के मौके पर शहर के अलावा फरीदपुर, टिसूआ, नवाबगंज, चनेहटी समेत तमाम स्थानों से सुबह से श्रद्वालु पहुंचे। श्रद्वालुओं की भीड़ रामगंगा तटों पर देखी गई। कुछ श्रद्वालुओं ने रामगंगा तट पर बैठे पंडों को दान-दक्षिणा देने के अलावा कथा का श्रवण भी किया। ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन हस्त नक्षत्र में मां गंगा स्वर्ग से धरती पर आईं थीं। इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है। ऐसे मौके पर दान करने से पूर्व में किए गए पाप-कर्म नष्ट हो जाते हैं। गंग सकल मुद मंगल मूला, सब सुखकरनि हरनि सब सूला अर्थात गंगाजी समस्त आनंद-मंगलों की मूल हैं। वे सब सुखों को करने वाली और सब पीड़ाओं को हरने वाली हैं। इसी श्रद्धा से श्रद्वालु प्रात:काल से ही रामगंगा घाट पहुंचने लगे थे। सुबह में घाट पर मां गंगा के भक्त ही भक्त दिख रहे थे। ब्रह्म मुहूर्त में स्नान शुरू हो गया। रामगंगा तट हर-हर गंगे के जयकारों से गुंजायमान हो रहा था। गंगा स्नान करने के बाद श्रद्धालुओं ने सूर्यदेव को अर्घ्य दिया, वहां पर पूजा-पाठ किया।
लोगों ने कई दिनों पहले से ही रामगंगा मेले में नखासा बाजार में अपने-अपने जानवरों को बिक्री के लिए लाने शुरू कर दिये थे। 16 जून गंगा दशहरा के मौके पर सुबह से घोड़ों के मालिकों ने अपने-अपने घोड़ों सजाने के लिए साज-सज्जा का सामान खरीदा। दुकानदारों का कहना है कि पिछली बार की अपेक्षा इस बार अधिक बिक्री हुई है।
रामगंगा मेले में खुरापातियों पर निगरानी रखने के लिए 8 वाच टावर लगाए गए थे। जहां से सुरक्षा बल खुरापातियों पर पैनी नजर रखे हुए था। इसके अलावा कई पुलिसकर्मी सिविल ड्रेस में टहलते हुए उचक्कों पर नजर रखे हुए थे। घाटों पर सुरक्षा के कढ़े इंतजाम थे। गोताखोर भी तैनात रहे।