पांच बेटियां होने के बाद गर्भवती पत्नी का पेट हंसिया से फाड़ने वाला पन्नालाल उम्रकैद की सजा होने के बाद जेल जा चुका है। वह वंश चलाने के लिए बेटे की चाह में इतना पागल हो गया था कि हैवान बन गया। आठ महीने की गर्भवती के पेट में हंसिया मार दिया था। जिससे गर्भ में पल रहे शिशु की मृत्यु हो गई थी। जो बेटा ही था। अगर एक महीने और धैर्य रख लेता तो उसकी आस पूरी हो जाती। उसके एक भाई की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी। अब उसके वंश को आगे बढ़ाने वाला कोई नहीं है। पति को सजा दिलाने के लिए अनीता के संघर्ष में उसके मायके वालों ने भी पूरा साथ दिया। पति को सजा मिलने पर वह कहती है कि करनी का फल तो भुगतना ही पड़ता है। इन चार सालों में अनीता ने मुश्किल से खुद को संभाला और अपने बच्चों को हिम्मत दी।
शहर के मुहल्ला नेकपुर निवासी पन्नालाल की शादी पास के गांव ही घोंचा की रहने वाली अनीता से 26 वर्ष पहले हुई थी। शादी के 22 वर्ष के दौरान बेटे की चाहत में एक के बाद एक पांच बेटियां हो गईं। धीरे-धीरे नौवत यह आ गई कि पन्नालाल अपनी पत्नी अनीता को इसी बात से नफरत करने लगा। आये दिन पीटता और प्रताड़ित करता था। बेटियों की परवरिश और उनकी शादी व्याह की चिंता में वह सब झेलती रही। इस दौरान बड़ी बेटी काजल का विवाह भी कर दिया। लेकिन पन्नालाल को बेटे की चाह थी। इसके चलते अनीता फिर गर्भवती हो गई। यह छठी बार था। अनीता बताती हैं कि वह आठ माह की गर्भवती थीं।
पति हर रोज पीटता और धमकाता। कहता था कि इस बार बेटा न हुआ तो वह दूसरी शादी कर लेगा। इसी बीच 19 सितंबर 2020 को उसके सिर पर पागलपन सवार हुआ। वह बोला पेट फाड़कर देखेगा कि गर्भ में बेटा है या बेटी। वह डर गई और भागने लगी। वह हाथ में हसिया लिए हुए पीछे दौड़ा और घर के दरवाजे पर सड़क पर गिरा लिया और छाती पर बैठ कर पेट फाड़ दिया। जिससे गर्भ में पल रहे आठ माह के बेटे की मृत्यु हो गई और उसकी हालत गंभीर हो गई।
अनीता का पेट फाड़ने के बाद आरोपित पति तो फरार हो गया था। सूचना पर मायके वाले उसे लेकर जिला अस्पताल पहुंचे। अनीता के भाई रवि बताते हैं कि यहां से बहन को सैफई रेफर किया गया। लेकिन वह बरेली ले गये। कुछ दिन वहां इलाज चला, लेकिन हालत में सुधार नहीं हुआ। इसके चलते दिल्ली सफदरगंज अस्पताल ले गये। बताया कि शुरुआती इलाज के दौरान खून आदि रोकने के लिए रुई लगा दी गई थी, जो अंदर चिपक गई थी। बरेली के अस्पताल और दिल्ली के सफदरगंज में उस रुई को निकालने में ही काफी समय लगा। इसके बाद हालत दिन पर दिन बिगड़ती गई। लेकिन उन लोगों ने हिम्मत नहीं हारी। रुपये पैसा कुछ नहीं था। उपचार तो फ्री था लेकिन दवाईयां बहुत महंगी थीं। ऐसे में उनके परिवार की एकता काम आई। अब अनीता उसी घर में रह रहीं हैं जहां यह घटना हुई थी। भाई रवि ने बताया कि यह घर अनीता और पन्नालाल दोनों के नाम पर था। घर के बाहर पहले से ही दुकान थी। लगभग छह माह तक घर पर भी उपचार चला। इसके बाद घर के बाहर परचून की दुकान खोल ली। दुकान से ही थोड़ा बहुत घर खर्चा-पानी चलाती हैं।