दुष्कर्म का आरोप साबित नहीं, लेकिन गर्भपात का दोषी कोर्ट ने पाया कि दुष्कर्म का आरोप गवाहों और साक्ष्यों के अभाव में साबित नहीं हो सका, लेकिन महिला का गर्भपात कराए जाने का मामला सही पाया गया। कोर्ट के निर्णय के अनुसार, महिला पांच हफ्ते और तीन दिन की गर्भवती थी, और युसुफ ने उसका गर्भपात कराया। महिला ने शिकायत में यह भी बताया कि युसुफ ने उसे और उसके बच्चे को जान से मारने की धमकी दी थी। इसके आधार पर कोर्ट ने युसुफ को दोषी मानते हुए उसे उम्रकैद की सजा सुनाई।
पुलिस अधिकारियों पर भी कार्रवाई के आदेश इस मामले में कोर्ट ने पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि भोजीपुरा के तत्कालीन सीओ चमन सिंह चावड़ा, इंस्पेक्टर जगत सिंह, और विवेचक दारोगा तेजपाल सिंह ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग किया और घटना को संदिग्ध मानने के बावजूद दुष्कर्म के आरोप में चार्जशीट दाखिल की। कोर्ट ने इस आधार पर तीनों पुलिस अधिकारियों के खिलाफ धारा 219 आइपीसी के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। साथ ही, इन अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की भी सिफारिश की गई है।
शादी का झांसा देकर कराया गर्भपात महिला ने पिछले साल भोजीपुरा थाने में युसुफ के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उसने आरोप लगाया कि उसके पति की मृत्यु के बाद युसुफ ने शादी का झांसा देकर छह महीने तक शारीरिक संबंध बनाए। जब वह गर्भवती हो गई, तो युसुफ ने उसका गर्भपात करा दिया और फिर उसे छोड़ दिया। इसके बाद युसुफ के पिता ने महिला से कहा कि वह युसुफ का पीछा छोड़ दे। जब मामला थाने पहुंचा, तो दोनों के बीच समझौता कराने की कोशिश की गई, लेकिन बाद में युसुफ ने शादी करने से इनकार कर दिया।
6 गवाहों ने खोली पुलिसिया कहानी की पोल सरकारी वकील दिगंबर सिंह और सौरव तिवारी ने इस मामले में छह गवाह पेश किए। कोर्ट में यह भी स्पष्ट हुआ कि महिला और युसुफ के बीच शारीरिक संबंध पहले से ही थे, जब महिला का पति जीवित था। कोर्ट ने कहा कि यह दुष्कर्म की श्रेणी में नहीं आता, लेकिन गर्भपात कराने और जान से मारने की धमकी देने के लिए युसुफ दोषी है।
कार्रवाई के लिए एसएसपी को भेजी आदेश की कॉपी फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज रवि कुमार दिवाकर ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए अभियुक्त को गलत तरीके से दुष्कर्म के आरोप में फंसाने का प्रयास किया। जज ने कहा कि अभियुक्त के अधिकारों की रक्षा करना उतना ही जरूरी है जितना कि पीड़ित को न्याय दिलाना। न्यायपूर्ण विवेचना अभियुक्त का भी मौलिक अधिकार है, और यदि अभियुक्त को गलत आरोप में फंसाया जाता है, तो वादी और पुलिस को भी दंडित करना आवश्यक है। कोर्ट ने तीनों पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के आदेश जारी करते हुए एसएसपी को भी इसकी एक प्रति भेजी है।