सिर्फ जुबानी घोषणा : -अंचल में उदयपुर पर्यटकों का बड़ा केंद्र हैं। बांसवाड़ा में धार्मिक स्थानों पर श्रद्धालुओं की संख्या में लगातार हो रही बढ़ोतरी को देखते हुए कुछ वर्ष पहले राज्य सरकार ने मेवाड़-वागड़ पर्यटन सर्किट बनाने की घोषणा की थी। इसके पीछे मंशा यह थी कि उदयपुर और नाथद्वारा आने वाले पर्यटकों को वागड़ तक खींचा जा सके, लेकिन यह जुबानी खर्च तक सीमित रही और यह आज तक अमलीजामा नहीं पहन पाई है।
प्रस्तावों को मूर्त रूप का इंतजार : -जिले के पर्यटन विकास के लिए गत राज्य सरकार ने बजट में दस करोड़ रुपए की राशि से माही के टापुओं का विकास करने की घोषणा की थी, लेकिन यह कलक्टर कक्ष में पर्यटन उन्नयन समिति की बैठक से बाहर ही नहीं आ पाई। टापुओं का विकास तो दूर, अब तक इसकी डीपीआर भी नहीं बन पाई है। ऐसे में अरावली की उपत्यकाओं से घिरा बांसवाड़ा पर्यटन की दृष्टि से उपेक्षा झेल रहा है।
यह है पुरातन धरोहर : -जिले में पुरातत्व धरोहरें शिल्प और स्थापत्य कला का भी दिग्दर्शन कराती है। 9वीं और 11वीं शताब्दी के अरथूना, पाराहेड़ा, तलवाड़ा और छींच के पुराने मंदिर इसके साक्षी हैं। पाण्डवों के अज्ञातवास की स्थली घोटिया आम्बा, रामकुण्ड, भीमकुण्ड पर्यटकों को मोहित करने की क्षमता रखते हैं। इसके अतिरिक्त धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में त्रिपुरा सुंदरी, मंदारेश्वर, साईं मंदिर, अब्दुल्ला पीर की दरगाह,तलवाड़ा में सूर्य, गणपति एवं द्वारिकाधीश मंदिर, छींच का ब्रह्मा मंदिर, अंदेश्वर पाŸवनाथ जैन मंदिर, घाटोल में डगिया भैरव आदि धर्मावलम्बियों की आस्था के प्रमुख केंद्र हैं।
यहां प्रकृति का सौन्दर्य : -जिले में माही बांध, माही बांध के बेकवाटर के टापू, चाचाकोटा, कागदी पिकअप वियर, कड़ेलिया फॉल, झोल्ला फॉल, काकनसेजा फॉल, कागदी फॉल, जुआ फॉल आदि स्थान ऐसे हैं, जहां बरसात में प्रकृति पूरा सौन्दर्य लुटाती है। पहली बारिश के बाद पहाडिय़ां हरीतिमा की चादर ओढ़ लेती हैं। हरियाली और बहता पानी ही पर्यटकों को यहां लाने में सक्षम है, लेकिन गंभीर प्रयास नहीं हो रहे हैं।