कम समय में पकने वाली फसलों पर बढ़ा रुझान
चितरोड़िया (से.नि. अध्यापक, किसान) भारतेंद्र सिंह चौहान ने बताया कि आजकल बाजारों में कम समय में अधिक पैदावार होने वाली धान के बीज उपलब्ध है। जिसे ही किसान पसंद कर रहे हैं। काली कमोद पकने में पांच से साढ़े पांच माह लगते है वहीं अन्य धान चार से साढ़े चार माह में पक जाता है। जिसमे आंध्र जीरा व सफेद जीरा प्रचलन में है। यह भी पढ़ें – आखिरकार किरोड़ी लाल मीणा ने बताई अपने इस्तीफे की असली वजह, जानें क्या कहा मेहनत के मुताबिक मुनाफा कम
रैयाना के किसान रमण पाटीदार ने अपना दर्द बयान करते हुए कहा काली कमोद की खेती पूर्व में इस क्षेत्र में खूब की जाती थी। मेरी आयु 60 वर्ष हो गई है। मैंने शुरू से खेती की। मैंने इस वर्ष भी काली कमोद की है। परंतु अब जितनी मेहनत उतना मुनाफा नहीं मिल रहा है। फसल पकने ने भी समय अधिक लगता है। जिससे आगे गेहूं की फसल लेट हो जाती है।
काली कमोद की पैदावार रह गई सिर्फ 1-2 प्रतिशत
कार्यवाहक सहायक कृषि अधिकारी, जोलाना रोहित यादव ने बताया कि पूरे क्षेत्र में अब काली कमोद की पैदावार एक से दो प्रतिशत रह गई है। इस की ऊंचाई अधिक होने से आड़ी पड़ जाना, पैदावार कम होना, मुनाफा कम होना कारण है। कम समय में अधिक पैदावार पर किसानों का ध्यान है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी डिमांड
राजस्थान के काली कमोद के चावल की डिमांड अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी है। देश के विभिन्न राज्यों के साथ ही विदेशों में भी सुपर मार्केट पर भी काली कमोद के चावल उच्चे दामों में बिक रहे हैं। साथ ही ऑन लाइन बाजारों में भी यह उपलब्ध है। जिसे विदेशी खूब पसंद करते हैं।
यह है प्रमुख कारण
फसल पकने में समय अधिक लगना, पानी की आवश्यकता अधिक होना, खड़ी फसल बारिश तूफान में आड़ी पड़ जाना, खराबे पर बीमा नहीं मिलना और मेहनत के मुताबिक मुनाफा कम मिलना। जहां एक बीघा में काली कमोद 4 क्विंटल होती है वही अन्य धान 12 क्विटंल तक होती है। कम समय में अधिक पैदावार वाले धान की फसल के बीज बाजार में उपलब्ध होने से किसानों के रुझान उस और अधिक है।
महक ही है प्रमुख पहचान
काली कमोद के चावल को सभी चावलों की वैरायटी में इसे उच्च कोटि का माना जाता है। इस चावल की खासियत इसके स्वाद के साथ ही प्रमुख इसकी महक है। जो बनने के साथ ही पूरे घर में फैलने लगती है। इतना ही नहीं काली कमोद फसल के दौरान भी अपनी महक खेतों में बिखरने लगती है।