बांसवाड़ा को कहते हैं ‘राजस्थान का चेरापूंजी’
बांसवाड़ा को ‘राजस्थान का चेरापूंजी’ कहते हैं क्योंकि यहां राज्यभर में सर्वाधिक वर्षा होती है। लेकिन इस मानसून 22 अगस्त तक यहां मात्र 33 प्रतिशत बारिश दर्ज की गई थी। क्षेत्र में बारिश कम होने से फसल प्रभावित हो रही है। मान्यता है कि इस आयोजन से इन्द्र देव प्रसन्न होते हैं और अच्छी बारिश होती है।
राजस्थान का बांसवाड़ा जहां सावन तक अच्छी बारिश नहीं हुई लेकिन स्थानीय लोगों ने फिर भी उम्मीद नहीं छोड़ी। 23 अगस्त शुक्रवार को महिलाओं ने बारिश होने के लिए धाड़ निकाली। ऐसे में इंद्रदेव मेहरबान हो गए। वैसे तो बांसवाड़ा में अकसर मानसून मेहरबान रहा लेकिन इस बार मानसून में कमी आता देख आदिवासी महिलाओं ने कई सालों बाद धाड़ निकालने की परंपरा को पुनर्जीवित किया है। शुक्रवार को पुरुषों की तरह धोती-कुर्ता और पगड़ी बांधकर, अपने हाथ में तलवार व लट्ठ लिए सड़कों पर निकल पड़ीं। जनजाति परंपरा के तहत गीत गाती महिलाएं एवं युवतियों ने शौर्य प्रदर्शन किया। इस दौरान सड़क पर ही गेर नृत्य का भी खूब रंग जमा। इस दौरान पुरुष सड़क के एक ओर खड़े रहे। पूरे आयोजन की कमान महिलाओं के ही हाथ में रही। इसका महिलाओं ने खूब लुत्फ उठाया। जल्द अच्छी बारिश की कामना करते हुए जब वे आनंदपुरी क्षेत्र, परकोटा स्थित बागेश्वरी माता मंदिर होते हुए अनास नदी के समिप स्थित गौतमेश्वर महादेव मंदिर पहुंची तो लोग उन्हें ऐसे धोती-कुर्ता और पगड़ी पहने, तलवार हाथों में लिए देख चौंक गए।
शाम को हुई जोरदार बारिश
ऐसे में धाड़ का असल दिखना शाम से ही शुरू हो गया। इंद्रदेव बांसवाड़ा जिले पर मेहरबान हो गए। उधर मौसम विभाग ने 24 अगस्त को बांसवाड़ा और डूंगरपुर इलाके में भारी बारिश का रेड अलर्ट जारी कर दिया। सोमवार को भी यहां भारी बारिश दर्ज की गई।
परंपरा का दिखने लगा असर
इस धाड़ में शामिल 66 वर्षीय प्रेम लता भट्ट ने बताया कि जब धाड़ टामटिया गांव से होकर गुजरा तभी इलाके में बारिश शुरू हो गई थी। ये बारिश हमारे धाड़ परंपरा के महत्व को दर्शाता है। उनका कहना है कि बांसवाड़ा की आदिवासी महिलाओं ने यह सिद्ध कर दिया कि कभी-कभी विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिए हमारी परंपरा ही काफी है।