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बैंगलोर

कर्नाटक की राजनीति में कम ही नेताओं को मिल सकी एसएम कृष्णा जैसी ऊंचाइंया

अमरीका रहते पैदा हुई राजनीति में दिलचस्पी, कैनेडी की जीत में निभाई अहम भूमिका
1962 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मद्दूर से चुनाव लड़े और कांग्रेस के दिग्गज नेता केवी शंकर गौड़ा को परास्त किया

बैंगलोरDec 11, 2024 / 08:05 pm

देश के दूसरे बड़े सम्मान पद्मविभूषण से सम्मानित सोमनहल्ली मलय्या कृष्णा (एसएम कृष्णा) ने प्रदेश की राजनीति में जिस ऊंचाई को छुआ वहां तक बहुत कम राजनेता पहुंच पाते हैं। शून्य से शीर्ष तक की उनकी यह यात्रा काफी पहले शुरू हो गई जब, वह अमरीका के जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में कानून के छात्र थे। तब, वैश्विक राजनीति के प्रति उनके आकर्षण ने एक साहसिक कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।
अमरीका में राष्ट्रपति का चुनाव था और उन्होंने तत्कालिन राष्ट्रपति के उम्मीदवार जॉन एफ.कैनेडी से संपर्क किया। वह अमरीका के भारतीय आबादी वाले क्षेत्रों में प्रचार करने और अपनी सेवाएं देने की पेशकश की। मेधावी कृष्णा का यह केवल उत्साह नहीं था। बल्कि, कैनेडी को प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण समर्थन हासिल करने में मदद करने के लिए एक रणनीतिक कदम था। उनके इस प्रयास पर तब, किसी का ध्यान नहीं गया। लेकिन, जब, कैनेडी ने 1960 के चुनाव में जीत हासिल की तो कृष्णा को एक निजी पत्र भेजा जिसमें चुनावी अभियान में उनके योगदान की सराहना करते हुए धन्यवाद दिया। कैनेडी ने यहां तक कहा कि, ये कुछ पंक्तियां आपके अथक प्रयासों के लिए हार्दिक सराहना के रूप में हैं। आपके प्रयासों के बिना यह जीत संभव नहीं थी। कृष्णा के भविष्य के दृष्टिकोण से यह काफी महत्वपूर्ण साबित हुआ और कर्नाटक के साथ ही देश में एक नए राजनेता का उदय हुआ।
पहले ही चुनावी मुकाबले में दिग्गज को दी शिकस्त
कृष्णा 1962 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मद्दूर से चुनाव लड़े और कांग्रेस के दिग्गज नेता केवी शंकर गौड़ा को परास्त किया जिनके लिए तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी चुनावी सभा की थी। इसके बाद वे राजनीति में एक के बाद एक सीढिय़ां चढ़ते गए। मंड्या जिले के सोमनहल्ली में 1 मई 1932 को जन्मे कृष्णा ने मैसूर के महाराजा कॉलेज से लेकर अमरीका के जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में भी पढ़ाई की। भारत लौटने के बाद, उन्होंने बेंगलूरु के रेणुकाचार्य लॉ कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रोफेसर के रूप में काम किया।
विधानसभा से संसद और फिर शीर्ष तक
कृष्णा प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुए लेकिन, 1967 के विधानसभा चुनाव में मद्दूर से चुनाव हार गए। उसके बाद 1968 में मंड्या लोकसभा क्षेत्र से उपचुनाव जीतने में सफल रहे और पहली बार संसद पहुंचे। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हुए और 1971 के बाद 1980 के लोकसभा चुनाव में भी जीत दर्ज की। वह 1980 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कैबिनेट में मंत्री रहे। कृष्णा ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में राज्य का प्रतिनिधित्व किया। वर्ष 1999 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर विधानसभा चुनावों की कमान संभाली और पार्टी को सत्ता में लाया। इसके बाद अक्टूबर 1999 से मई 2004 तक राज्य के 16वें मुख्यमंत्री के तौर पर कर्नाटक को नई ऊंचाई दी।
उथल-पुथल भरा रहा मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यकाल
मुख्यमंत्री के तौर पर उनका 5 साल का कार्यकाल उथल-पुथल से भरा रहा। इसी दौरान कन्नड़ फिल्मों के जाने-माने अभिनेता राजकुमार का वीरप्पन ने अपहरण कर लिया जिसके बाद राज्य में लगभग 108 दिनों तक अशांति रही। इन तमाम चुनौतियों से निपटते हुए कृष्णा ने राजकुमार को वीरप्पन के चंगुल से मुक्त कराया और कर्नाटक को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। वर्ष 2004 के चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला और उन्हें महाराष्ट्र का राज्यपाल बनाया गया। राज्यपाल के तौर पर भी उनका कार्यकाल घटनाक्रम से भरा रहा। उन्होंने महाराष्ट्र के दो मुख्यमंत्रियों सुशील कुमार शिंदे और विलासराव देशमुख के साथ काम किया। इस दौरान डांस बारों पर विवादास्पद प्रतिबंध को मंजूरी देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महाराष्ट्र की राजनीतिक कठिनाइयों को अपने सामान्य संतुलन के साथ संभाला। वह 2009 से 2012 तक वह भारत के विदेश मंत्री रहे जब प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में केंद्र में यूपीए सरकार की सत्ता थी। उनके विदेश मंत्री रहने के दौरान ही 26 नवम्बर 2011 को मुंबई पर आतंककारी हमले की घटना घटी।
ब्रांड बेंगलूरु के लिए बटोरी सोहरत
हालांकि, कृष्णा ने राजनीति में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं लेकिन, ब्रांड बेंगलूरु के आर्किटेक्ट के तौर पर उन्हें अधिक सराहना मिली। अपने कॉर्पोरेट शैली के प्रशासन और राज्य में सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर जोर देने के लिए अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। वर्ष 1999 में, उनकी सरकार ने बेंगलूरु एजेंडा टास्क फोर्स (बीएटीएफ) का गठन किया, जिसमें विप्रो के अजीम प्रेमजी और इंफोसिस के नंदन नीलेकणि जैसी हस्तियां थी। इस पहल का उद्देश्य आईटी के केंद्र के रूप में बेंगलूरु के विकास के लिए एक रणनीति योजना का मसौदा तैयार करना था। उनके निर्देशन में ही बेंगलूरु कैलिफोर्निया की सिलिकॉन वैली का एक विकल्प बन गया। उनकी सक्रिय रणनीति ने बेंगलूरु को नवाचार और प्रौद्योगिकी के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित किया, साथ ही बड़ी संख्या में नौकरियां भी पैदा कीं।

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