पृथ्वी की कक्षा में अंतरिक्षयानों की अत्यंत तीव्र गति इस मिशन के लिए एक बड़ी चुनौती बनती है। दोनों अंतरिक्षयान लगभग 8 किलोमीटर प्रति सेकेंड (28800 किमी प्रति घंटे) की रफ्तार से चक्कर काटते हुए एक-दूसरे की तरफ बढ़ेंगे। इसमें चेजर अंतरिक्षयान टारगेट अंतरिक्ष यान की ओर बढ़ेगा और उससे जुड़ेगा। जब, चेजर अंतरिक्ष यानी टारगेट अंतरिक्ष यान के करीब पहुंचेगा तो उसकी गति थोड़ी धीमी हो जाएगी। टकराव से बचाने और सहज संयोजन सुनिश्चित करने में कई तकनीक, नेविगेशन और कई प्रणालियां काम करेंगी। जुडऩे के बाद दोनों अंतरिक्षयान एक इकाई बन जाएंगे और एक इकाई के रूप में उनका परिचालन किया जाएगा। इसरो की योजना के मुताबिक जुडऩे के बाद फिर से दोनों अंतरिक्ष यानों का विच्छेदन भी होगा। परीक्षण के दूसरे चरण में दोनों अंतरिक्ष यानों को अलग-अलग किया जाएगा।
इस मिशन के लिए दोनों अंतरिक्षयानों का इंटीग्रेशन हैदराबाद स्थित एक निजी एयरोस्पेस एवं रक्षा कंपनी अनंत टेक्नोलॉजीज ने किया है। कंपनी ने ये दोनों अंतरिक्षयान इसरो को सौंप दिए हैं। उपग्रहों का भार लगभग 400 किलोग्राम है और इन्हें इसरो अपने विश्वसनीय धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपणयान (पीएसएलवी) से दिसम्बर में लांच करने की योजना बना रहा है।
भारत के भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को देखते हुए यह तकनीक बेहद आवश्यक है। इसरो ने 2028 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की पहली इकाई और 2035 तक परिचालन योग्य एक अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण कई इकाइयों (अंतरिक्षयानों) को जोडक़र किया जाएगा जो डॉकिंग तकनीक से ही होगा। चंद्रयान-4 मिशन में इस तकनीक का कई बार प्रयोग होगा। चंद्रयान-4 के दो यूनिट अलग-अलग प्रक्षेपणयानों से लांच किए जाएंगे और उन्हें डॉकिंग तकनीक से पृथ्वी की कक्षा में जोडक़र चंद्रमा की ओर रवाना किया जाएगा। चंद्रमा की कक्षा में भी इस तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। चंद्रयान-4 का एसेंडर मॉड्यूल चंद्रमा की सतह से नमूने लेकर जब उसकी कक्षा में पहुंचेगा तो वहां पहले से चक्कर लगा रहे री-एंट्री मॉड्यूल और ट्रांसफर मॉड्यूल के साथ उसकी डॉकिंग की जाएगी। हालांकि, डॉकिंग तकनीक के ये नजदीकी भविष्य के उपयोग हैं लेकिन, मानव मिशन से लेकर अंतरिक्ष अन्वेषण में यह तकनीक कदम-कदम पर काम आएगी।