बेंगलूरु. पिछले एक हजार वर्षों का पराधीन अखंड भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि अहिंसा और मानवता की रक्षा में जैन साधुओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है। चामराजपेट स्थित शीतल-बुद्धि-वीर वाटिका की विशाल धर्मसभा में आचार्य विमलसागरसूरी ने जैन श्रमणों के योगदान की चर्चा करते हुए यह बात कही।
उन्होंने कहा कि पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक, हर क्षेत्र में जैन श्रमणों ने जीवदया, अकाल राहत, महामारी में सहायता, बाढ़ पीड़ितों की रक्षा, व्यसन मुक्ति, कर्ज मुक्ति और हिन्द की रक्षा के लिए जैन समाज को जगाकर, अरबों-खरबों रुपयों का योगदान दिलवाया। जैनाचार्यों से प्रेरित होकर जैन श्रेष्ठियों ने अपने खजाने मानवता के लिए खोले। आचार्य ने कहा कि मारवाड़, मेवाड़, सिंध, लाहौर, काबुल, गंधार, पंजाब, गुजरात, कच्छ, मराठा, गोवा, बिहार, बंगाल, मुर्शिदाबाद, उड़ीसा और दक्षिण व मध्य भारत के इतिहास के ऐसे सैकड़ों जैन साधुओं और जैन श्रेष्ठियों के उल्लेख युगों-युगों तक भारतीय समाज को प्रेरणा देते रहेंगे।
जैनाचार्य ने कहा कि हर भारतीय युवा को अपने देश का वास्तविक इतिहास जानना चाहिए। जो पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाया गया है, वो आधा-अधूरा, झूठा या गलत पढ़ाया गया है। इसलिए अब एक शैक्षणिक क्रांति की भी सख्त आवश्यकता है, जिससे सत्य और तथ्य नई पीढ़ी को ज्ञात हो सकें।