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बैंगलोर

कैंसर का वातावरण सृजित कर वैज्ञानिकों ने किया अहम शोध

कैंसर कोशिकाओं तक पहुंचेंगे नैनोमोटर्स, उपचार में भी हो सकते हैं कारगरआइआइएससी के वैज्ञानिकों ने किया थ्रीड ट्यूमर मॉडल पर अध्ययन

बैंगलोरOct 11, 2020 / 01:05 pm

Rajeev Mishra

कैंसर का वातावरण सृजित कर वैज्ञानिकों ने किया अहम शोध

कैंसर का वातावरण सृजित कर वैज्ञानिकों ने किया अहम शोध

बेंगलूरु.
भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी) के शोधकर्ताओं की एक टीम ने थ्री डी ट्यूमर मॉडल और चुंबकीय रूप से संचालित नैनोमोटर्स (प्रोपेलर) का उपयोग कर कैंसर कोशिकाओं के सूक्ष्म वातावरण का अध्ययन किया है। इस शोध का परिणाम आने वाले दिनों में कैंसर जैसी घातक बीमारी के उपचार में काफी उपयोगी साबित हो सकता है।
शोधकर्ताओं की टीम ने इसके लिए प्रयोगशाला में कैंसर जैसा वातावरण तैयार किया। कुछ स्वस्थ और कुछ कैंसर कोशिकाएं ली और दोनों को साथ-साथ एक स्थान पर विकसित किया। स्वस्थ और कैंसर कोशिकाओं का यह वातावरण स्तन कैंसर जैसा था। दरअसल, यही विशेष सेट-अप थ्री डी ट्यूमर मॉडल है जिसमें वैज्ञानिकों ने चुंबकीय शक्ति से चालित एक नैनोमोटर्स को घुमाया।
चिपचिपा व आवेशित वातावरण बनाती हैं कैंसर कोशिकाएं
शोध टीम का नेतत्व करने वाले आइआइएससी में आणविक प्रजनन, विकास एवं आनुवंशिकी विभाग के प्रोफेसर रामराय भट ने ‘पत्रिका’ को बताया कि स्क्रू के आकार के इस नैनोमोटर्स को जब थ्री डी ट्यूमर के अंदर घुमाया तो वे कैंसर कोशिकाओं के आसपास जाकर चिपक गए। ये स्वस्थ कोशिकाओं के पास जाते ही नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि कैंसर कोशिकाएं अपने आसपास एक चिपचिपा वातावरण बनाती हैं। ये चिपचिपा वातावरण धनावेशित या ऋणावेशित (पॉजिटिव या निगेटिव चाज्र्ड) होते हैं। इसी के कारण नैनोमोटर्स इन कोशिकाओं में जाकर चिपक जाते हैं और एक मजबूत बंध बनाते हैं।
कैंसर कोशिकाओं पर सीधा वार संभव
भट ने बताया कि इस आविष्कार का सबसे बड़ा लाभ यह हो सकता है कि इन नैनोमोटर्स को कैंसर कोशिकाओं तक पहुंचने का एक माध्यम बना सकते हैं। चूंकि, ये आवेशित होते हैं इसलिए अगर किसी तकनीक का उपयोग कर इन नैनोमोटर्स के जरिए कुछ दवाएं आदि फेंके तो वे सीधे कैंसर कोशिकाओं तक ही पहुंचेंगे। पास की स्वस्थ कोशिकाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इससे कैंसर के उपचार में साइड इफेक्ट से बच सकते हैं। या फिर, अगर इमेजिंग करनी हो तो भी ये नैनोमोटर्स काफी उपयोगी साबित होंगे।
शुरुआती चरण में हो सकेगी कैंसर की पहचान
भट ने कहा ‘हम एक स्वस्थ और कैंसर कोशिका के वातावरण में कैसे भेद कर सकते हैं? उनमें कैंसर कोशिकाओं को कैसे ढूंढ सकते हैं? तो, इसका उत्तर यह है कि कैंसर कोशिकाएं अपने आसपास एक चिपचिपा वातवारण बना देती हैं जो आवेशित होती हैं। ऐसा स्वस्थ कोशिकाएं नहीं करतीं।’ उन्होंने कहा कि इस विशेषता का लाभ उठाकर भविष्य में किसी कोने में या छोटे-मोटे पर जगहों छिपी कैंसर कोशिकाओं का भी पता लगाया जा सकेगा। जब कैंसर पनप रहा है अथवा जब बहुत छोटा है और नहीं दिख नहीं रहा है तो भी इसकी पहचान शुरुआती स्टेज में ही हो सकेगा।’
जानवरों पर अध्ययन
फिलहाल वैज्ञानिक जानवरों पर इस मॉडल का अध्ययन कर रहे हैं। व्यवहारिक रूप से इसका उपयोग होने में अभी वक्त लगेगा। भट ने कहा कि हमने अभी मूल आविष्कार किया है। इस आविष्कार पर आधारित उपचार अस्पतालों तक पहुंचने में अभी समय लगेगा।

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