भौगोलिक पहचान की यह लड़ाई अब दक्षिणी राज्यों में भी पहुंच गई है। अब सवाल पूछा जा रहा है कि मैसूर पाक की खोज की किसने? क्या यह मैसूर (एकीकरण से पहले कर्नाटक का पुराना नाम) से आया, जैसा कि नाम से पता चलता है या तमिलनाडु से आया? वर्ष 1835 में लॉर्ड मैकाले ने भारतीय संसद में दिए अपने भाषण में मैसूर पाक का जिक्र किया था। इसके आधार पर तमिलनाडु के लोग यह दावा कर रहे हैं कि मैसूर पाक की खोज उनके यहां हुई है। तमिलों के इस दावे पर कर्नाटक के लोग बचाव कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस मिठाई के नाम से ही स्पष्ट है कि इसकी खोज मैसूर में हुई है।
बता दें, 2 फरवरी 1853 को लार्ड मैकाले ने कहा था, आप लोग इस बात का विश्वास नहीं करते कि मैसूर पाक की खोज एक मद्रासी ने की थी। बेंगलूरु में मेरे एक सबसे अच्छे मित्र ने इसके बारे में जानकारी दी। तमिल लोग मद्रास में मैसूर पाक बनाते हैं। 74 साल पहले मैसूर पैलेस एक वकील ने मैसूर पाक बनाने की विधि की चोरी कर ली थी। उसने मरने से पहले इसे मैसूर के राजा को दे दिया जिन्होंने इसका नाम मैसूर पाक रख दिया। मैकाले के इस विवरण के आधार पर अब तमिल लोग मैसूर पाक के लिए तमिलनाडु को भौगोलिक पहचान (जीआई) टैग देने की मांग कर रहे हैं।
उधर, कन्नड़ लोगों के मुताबिक मैसूर पाक का सबसे पहले निर्माण कृष्ण राज वाडियार चतुर्थ के कार्यकाल में हुआ था। इसे महल के कुक काकासूरा मडप्पा ने बनाया था। उन्होंने यह चने के आटे, घी और चीनी के मिश्रण से बनाया था। जब उनसे इसके नाम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कोई नाम सोचा नहीं था और उसे बस मैसूर पाक कह दिया। इसका संस्कृत नाम पाक है। दक्षिणी राज्यों में मैसूर पाक का इस्तेमाल शादी और अन्य कार्यक्रमों काफी किया जाता है। अभी मैसूर पाक को जीआई टैग नहीं मिला हुआ है।