अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के मणि ने खचाखच भरी अदालत में कहा कि अभियोजन इस बात के सबूत पेश करने में भी विफल रहा है कि 9 लोग वीरप्पन व उसके सहयोगी सेतुकुली गोविंदन से जुड़े थे। लिहाजा संदेह का लाभ देते हुए सभी को बरी किया जाता है। वीरप्पन तथा उसके साथियों ने 30 जुलाई 2000 को डा.राजकुमार, उनके ***** एस.ए. गोविंदराज, सहायक निदेशक नागप्पा तथा अभिनेता के एक सहयोगी को इरोड जिले के तलवाड़ी स्थित उनके फार्म हाउस से अपहृत कर लिया था। राजकुमार को वीरप्पन के पास पूरे 108 दिनों तक बंदी रखने के बाद छोड़ा गया था।
जज मणि ने अनेक बिंदुओं पर विफल रहने के लिए अभियोजन की जम कर खिंचाई की और कहा कि आरोपियों के वीरप्पन से संबंध साबित करने, महत्वपूर्ण सबूत पेश करने व डॉ. राजकुमार व उनकी पत्नी पार्वतम्मा के जीवित रहते उनसे पूछताछ में अभियोजन विफल रहा है। उन्होंने यह भी जानना चाहा कि कन्नड़ सुपर स्टार के परिजन इस मामले में शिकायत करने कभी आगे क्यों नहीं आए? परिजनों ने इस संबंध में तलवाड़ी में शिकायत दर्ज क्यों नहीं करवाई? उनकी पत्नी पार्वतम्मा से सवाल जवाब क्यों नहीं किए गए? अपहृतों में से एक नागप्पा से यहां तक कहा कि जब डॉ. राजकुमार का अपहरण किया गया, तो वे व दो अन्य लोग अपनी इच्छा से उनके साथ जंगलों में गए थे। इन बयानों को अदालत किस रूप में देख सकती है। जज ने केस की जांच करने वाली सीबी-सीआइडी की खिंचाई करते हुए सवाल किया कि उसने रिहाई की बातचीत करने मध्यस्थ बनकर जंगलों में गए गोपाल, नेदुमारन व अन्य लोगों से पूछताछ क्यों नहीं की? यदि ये लोग वास्तव में आरोपी हैं तो उनके घरों की तलाशी क्यों नहीं ली गई? उन्होंने कहा कि अभियोजन इस बात का कोई सबूत पेश नहीं कर सका, जिससे यह साबित होता हो कि ये लोग वीरप्पन से जुड़े थे।
न्यायाधीश ने कहा कि एफआइआर में कहा गया है कि डा. राजकुमार का अपरण करके उनका उत्पीडऩ किया गया था लेकिन जारी किए गए विडियो में डॉ.राजकुमार स्वयं कहते हैं कि मैं प्रसन्न हूं। उन्होंने यह भी सवाल किया कि डॉ. राजकुमार के रिहा होने के बाद शिनाख्त परेड क्यों नहीं करवाई गई?
अभियोजन ने 47 गवाह, 51 दस्तावेज तथा 32 सामग्री सबूत पेश किए। हालांकि न्यायाधीश ने जानना चाहा कि अपहरण के दौरान कथित रूप से इस्तेमाल बंदूक को पेश क्यों नहीं किया गया। आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 109, 120 बी, 147, 148, 449, 364 ए, 365 तथा आम्र्स एक्ट की धारा 25(1) बी तथा 27(1) के तहत आरोप लगाए गए थे। अपहरण के कारण पूरे तीन माह तक कर्नाटक तथा तमिलनाडु के बीच तनाव बना रहा था।