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बैंगलोर

तिब्बत नहीं चाहता आजादी, चीन के साथ रहने को तैयार

नेहरू पर टिप्पणी : दलाईलामा ने माफी मांगी

बैंगलोरAug 11, 2018 / 08:54 pm

Rajendra Vyas

Dalai Lama

तिब्बत नहीं चाहता आजादी, चीन के साथ रहने को तैयार

बेंगलूरु. निर्वासित तिब्बती धार्मिक नेता दलाई लामा ने शुक्रवार को कहा कि तिब्बत अब आजादी नहीं चाहता है, वह चीन के साथ भी रहने के लिए तैयार है बशर्ते तिब्बती संस्कृति के संरक्षण की गारंटी मिले।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीएटी) की ओर से यहां आयोजित ‘धन्यवाद कर्नाटकÓ कार्यक्रम को मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी की मौजूदगी में संबोधित करते हुए दलाईलामा ने कहा कि तिब्बती आजादी नहीं मांग रहे हैं, हम चीन के साथ बने रहने के लिए तैयार हैं। बस हम इतना चाहते हैं कि हमें अपनी संस्कृति के संरक्षण का पूरा अधिकार मिले। उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म का पालन करने वाले कई चीनी भी तिब्बती बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं क्योंकि उन्हें यह ज्यादा वैज्ञानिक लगता है। दलाई लामा ने दो दिन पहले पणजी में नेहरु-जिन्ना विवादा पर की गई टिप्पणी को लेकर भी माफी मांगी। उन्होंने कहा कि अगर उन्होंने कुछ गलत कहा तो वे उसके लिए माफी मांगते हैं। पणजी में गोवा प्रबंधन संस्थान के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने जवाहर लाल नेहरु को भारत-पाकिस्तान बंटवारे के लिए जिम्मेदार बताया था। दलाई लामा के इस बयान पर काफी विवाद हुआ था।
शुक्रवार को सीएटी की ओर से निर्वासन के 60 साल पूरे होने पर कृतज्ञता जताने के लिए चल रहे ‘धन्यवाद भारत-2018Ó श्रृंखला के तहतआयोजित कार्यक्रम में दलाई लामा ने अपने पूर्व के बयान पर खेद जताने के साथ ही 1959 में चीनी आक्रमण के बाद भारत आए हजारों तिब्बती शरणार्थियों व बौद्ध भिक्षुओं को शरण देने के लिए नेहरु को धन्यवाद भी दिया। दलाई लामा ने कहा कि उनका नेहरु के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध था। नेहरु ने तिब्बती संस्कृति की रक्षा को लेकर हमारी चिंताओं को हमेशा महत्व दिया और तत्कालीन शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में अलग तिब्बती स्कूलों की स्थापना को लेकर समिति भी बनाई थी। दलाई लामा ने कहा तिब्बतियों की कृतज्ञता से पता चलता है वे दयालुता को कभी नहीं भूलते हैं।

भारत ने बढ़ाया आत्मविश्वास
नेहरु के तिब्बती शरणार्थियों के शरण देने की नीति की प्रशंसा करते हुए दलाई लामा ने कहा कि जब हम यहां (भारत) आए थे तो काफी हतोत्साहित थे लेकिन पिछले 60 सालों के दौरान हमारा आत्मविश्वास काफी बढ़ा है और यह सिर्फ भारत सरकार के सहयोग और नेहरु की नीति के कारण ही संभव हो सका है। दलाई लामा ने कहा कि उन्हें जानकर काफी खुशी हुई कि कई चीनी नागरिक तिब्बती बौद्ध धर्म में ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। दलाई लामा ने कहा कि जब मैं अपनी सांस्कृतिक विरासत और ज्ञान की ओर देखता हूं तो मुझे तिब्बत का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है, इसलिए हमें निराशाजनक महसूस नहीं करना चाहिए।
कार्यक्रम के दौरान दलाई लामा ने तिब्बती शरणार्थियों के लिए 1959 में स्वेच्छा से अपनी भूमि दान करने वाले पूर्व मुख्यमंत्री एस.निजलिंगप्पा के बेटे प्रो.एस.एन.किरण शंकर को भी सम्मानित किया। कार्यक्रम में सीएटी के राष्ट्रपति लोबसांग सांगे ने तिब्बत में चीनी प्रशासन के दमन और उत्पीडऩ के बारे में चर्चा की। 1959 में चीन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद दलाई लामा के साथ काफी संख्या में तिब्बती शरणार्थी भारत आए थे। इनमें से अधिकांश हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में ही रहते हैं। राज्य के मैसूरु में तिब्बती शरणार्थियों का बड़ा शिविर है। (कासं)

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