युवक के साथ दिन-रात रहने वाले मुस्लिमों ने उसे अंतिम समय में न सिर्फ कंधा दिया, बल्कि अंतिम संस्कार में भी अपना भरपूर सहयोग दिया। शव यात्रा में हिंदू-मुस्लिम की भागीदारी बराबरी से रही। ऋषि वामदेव और बांदा नवाब की नगरी में इसके पूर्व भी विभिन्न प्रकार के सांप्रदायिक सौहार्द वाले उदाहरण सामने आते रहे हैं।
इस समय जबकि कोरोना के चलते लोग अपने निकट संबंधियों के अंतिम यात्रा में शामिल होने से कतराते हैं, उसमें मुस्लिमों द्वारा भागीदारी किए जाने को सभी ने सराहा। युवक का अंतिम संस्कार राजघाट में हुआ। अंतिम संस्कार में महमूद खां व वकील खां सहित बड़ी संख्या में मुस्लिम शामिल रहे।