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जानिए बलरामपुर राजपरिवार का गौरवशाली इतिहास, सामाजिक क्षेत्र में रहा उत्कृष्ट योगदान

बलरामपुर राज परिवार के मुखिया धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह ने शिक्षा, स्वास्थ्य और धार्मिक क्षेत्र अपने योगदान को लेकर राजपरिवार ने पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना रखी है।

बलरामपुरJul 31, 2018 / 07:36 am

आकांक्षा सिंह

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जानिए बलरामपुर राजपरिवार का गौरवशाली इतिहास, सामाजिक क्षेत्र में रहा उत्कृष्ट योगदान

बलरामपुर. बलरामपुर राज परिवार के मुखिया धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की आकस्मिक मौत से पूरे जिले में शोक की लहर है। राज परिवार के निवास नीलबाग पैलेस में सन्नाटा पसरा हुआ है। 29 जुलाई की देर शाम लखनऊ में धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की ह्रदय गति रुक जाने से मौत हो गयी। मौत की खबर मिलते ही नगरवासी शोक में डूब गये। बलरामपुर राज परिवार के मुखिया धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की मृत्यु पर सीएम योगी ने भी शोक व्यक्त करते हुये कहा कि इनके निधन से समाज को बड़ी क्षति हुई है। राजपरिवार का सामाजिक क्षेत्र में काफी योगदान रहा है। शिक्षा, स्वास्थ्य और धार्मिक क्षेत्र अपने योगदान को लेकर राजपरिवार ने पूरे देश में अपनी अलग पहचान बना रखी है। इस राज परिवार ने अपने राजमहल सिटी पैलेस को एमएलकेपीजी कालेज के रुप में स्थापित किया था जो आज तराई के आक्सफोर्ड के रुप में अपनी पहचान बनाये हुये है। इसके अलावा तमाम स्कूल और कालेज राज परिवार के संरक्षण में चलाये जा रहे है। यही नही स्वास्थ्य की दिशा में राज परिवार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जमीन्दारी उन्मूलन के पश्चात भी इस राजपरिवार के सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक योगदान में राज परिवार के मुखिया धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह का योगदान काफी सराहनीय रहा है। यहां के लोगों की जुबान पर धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह की लोकप्रियता के चर्चे हैं। कुछ माह पूर्व जिले के दौरे पर आये सीएम योगी ने भी बलरामपुर राज परिवार के किये गये कल्याणकारी कार्यों की मुक्तकण्ठ से सराहना की थी।


बलरामपुर राज परिवार का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। बलरामपुर राज की स्थापना चंद्रवंशी पांडव खानदान के युवराज बरयार शाह पावागढ़ गुजरात के वंशज बलरामपुर शाह ने की थी। बलरामपुर स्टेट 14वीं सदी में स्थापित हुआ था। राजपरिवार के लोग अत्यंत दूरदर्शी थे। बलरामपुर राज के पहले शासक राज माधव सिंह व अंतिम शासक महाराज पटेश्वरी प्रसाद सिंह रहे। देश की आज़ादी के बाद तक जीवित रहने वाले महाराज पाटेश्वरी प्रसाद सिंह की मृत्यु के बाद राज परिवार की कमान उनके दत्तक पुत्र महाराज धर्मेंद्र प्रसाद सिंह संभाल रहे थे। महाराजा दिग्विजय सिंह का देहावसान हो जाने पर महारानी इन्द्रकुवंरी ने उदित नारायण सिंह को गोद लिया जिनका नाम भगवती प्रसाद सिंह रखा गया। करीब 20 साल राज करने के बाद उनके मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने राज गद्दी संभाली।महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह के निधन के बाद महारानी राजलक्ष्मी कुमारी देवी ने अवयस्क महाराज धर्मेंद्र प्रसाद सिंह की वयस्कता तक राज का कार्यभार संभाला। 1976 को अपने पुत्र धर्मेन्द्र प्रसाद सिंह के वयस्क होते ही राज का समस्त कार्य सौप कर धार्मिक कार्यो में व्यस्त हो गयी और 1999 में साकेतवासी हो गयी। बलरामपुर के गौरवशाली राजवंशज महाराजा धर्मेंद्र प्रसाद सिंह का जन्म बहराईच जिले के गंगवल स्टेट के राजा कुंवर भरत सिंह के घर वर्ष 1958 में हुआ था। बलरामपुर के महाराज सर पाटेश्वरी प्रसाद सिंह की कोई संतान न होने के कारण उन्होंने धर्मेंद्र प्रसाद सिंह को गोद ले लिया था। वर्ष 1964 में महाराजा सर भगवती प्रसाद सिंह के स्वर्गवास के बाद धर्मेंद्र प्रसाद सिंह का राजतिलक कर उन्हे महाराज घोषित कर दिया गया था और तब से अब तक बलरामपुर स्टेट उन्हीं के अधीन था। महाराजा धर्मेंद्र प्रसाद सिंह के एक पुत्र कुंवर जयेंद्र प्रताप सिंह और एक पुत्री कुंवर विजय श्री हैं। महाराज सर धर्मेंद्र प्रसाद सिंह का विवाह 1980 में नेपाल के जंग बहादुर राणा की पुत्री महारानी बंदना राजलक्ष्मी के साथ हुआ था और 29 दिसंबर 1980 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिनका नाम जयेंद्र प्रताप सिंह रखा गया । 21 अप्रैल 1984 में पुत्री महाराज कुंवर विजय श्री का जन्म हुआ।

धार्मिक एवं सामाजिक उत्थान

बलरामपुर को शिक्षा के क्षेत्र में यदि छोटी काशी की संज्ञा दी जाती थी तो छोटे-बड़े तमाम मन्दिरों के कारण इसे छोटी अयोध्या भी कहा जाता था। बलरामपुर के राजाओं का जितना ध्यान क्षेत्र के चहुंमुखी विकास का रहता था धार्मिक प्रवृत्ति होने के कारण उतना ही ध्यान समाज सुधार के क्षेत्र में भी रहता था। पूरे अवध में तत्कालीन क्षत्रिय जाति में पुत्री बलि की कुप्रथा प्रचलित थी। बलरामपुर के तत्कालीन महाराजा दिग्विजय सिंह ने इसके विरूद्ध आवाज उठाई और अथक प्रयत्न से इस नृशंसता पूर्ण कुरीति को बन्द कराने में वे सफल हुए। बलरामपुर शिवालयों, मंदिरों एवं जलाशयों का नगर है। शिवालयों के अनन्त शिखर बलरामपुर को अयोध्या एवं मथुरा की तरह तीर्थ का स्वरूप देते है। नील बाग कोठी के पास राधाकृष्ण-मन्दिर और सिटी पैलेस के भीतर का पूजा गृह एवं वहंा का मंदिर गौरव एवं पवित्रता का द्योतक है। तुलसीपुर में देवी का स्थान, बिजलीपुर में बिजलेश्वरी देवी का मन्दिर, बलरामपुर में बड़ा ठाकुर द्वारा आदि अनेक मन्दिर बलरामपुर राजवंश की धार्मिक मनोवृत्ति के द्योतक है।


स्वास्थ्य

लोगों के स्वास्थ्य की दिशा में भी बलरामपुर राज का येागदान कुछ कम नहीं रहा। बलरामपुर राज द्वारा अस्पताल बनाए गए जो आज तक स्टेट की बिल्डिंग में कार्यरत है। उस जमाने में जब अस्पताल बनाये गए तब बलरामपुर राज द्वारा यह भी सोचा गया कि यह बन्द न होने पाए। इसके लिए एम0 पी0 पी0 ‘ट्रस्ट फार आउट पेशंट महारानी इन्द्रकुंवरि महिला चिकित्सालय, प्रसूति एवं बाल कल्याण विभाग तथा एम0 पी0 पी0 ट्रस्ट फार “वाॅ” एक्स-रे डिपार्टमेन्ट बनाए गए। सीतापुर नेत्र चिकित्सालय की नीव बलरामपुर राज द्वारा ही रखी गई और उसकी पर्याप्त धन से सहायता भी की जाती है। मेडिकल कालेज लखनऊ और प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित बलरामपुर अस्पताल आज भी बलरामपुर का नाम ऊंचा किए हुए हैं। वर्ष 1869 में बलरामपुर राज की जमीन एवं 2 लाख रूपये लगाकर महाराजा दिग्विजय सिंह ने इसकी स्थापना की थी। इसका विस्तार सन् 1901 में महाराजा भगवती प्रसाद सिंह ने किया था जिसका वर्तमान में आउटडोर एवं वार्ड्स के रूप में किया जा रहा है। ग्रामीण जनता के लिए 21 अस्पताल ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित कराए गए। आजादी के बाद यही अस्पताल सरकार द्वारा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के नाम से जाने जाते है।

शिक्षा

बलरामपुर को शिक्षा के क्षेत्र में काशी के बाद जाना जाता था लोग इसे छोटी काशी में कहते थे। बलरामपुर में छात्र छात्राओं के लिए पृथक-पृथक शैक्षिक संस्थानों की स्थापना की गई। यह शेैक्षिक संस्थाएं अबाध गति से चलती रहे इसके लिए महाराजाओं की दूरदर्शिता की दाद देनी पड़ेगी। महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ट्रस्ट की स्थापना 1951 में की गई। इस मुख्य ट्रस्ट के अधीन 12 छोटे छोटे ट्रस्ट है जिनमें शैक्षिक विकास के लिए एम0 पी0 पी0 ट्रस्ट फार महारानी लाल कुवंरि महाविद्यालय, एम 0 पी0 पी0 ट्रस्ट फार हाईस्कूल (इण्टर) वर्तमान एम0 पी0 पी0 इण्टर कालेज का नाम पूर्व में लायल कालेजिएट जूनियर हाईस्कूल था।, एम0 पी0 पी0 ट्रस्ट फार गल्र्स जूनियर स्कूल, एम0 पी0 पी0 ट्रस्ट फार देवेन्द्र कुवरि बालिका विद्यालय, एम0 पी0 पी0 ट्रस्ट फार डी0 ए0 वी0 कालेज एवं बलरामपुर ओेैर तुलसीपुर की संस्कृत पाठशालाएं आज भी कार्यरत है। बलरामपुर के छात्र – छात्राओं को उच्च शिक्षा हेतु अन्य नगरों में भी जाना पड़ता था। महाराजा साहब ने उन बाहरी शैक्षिक संस्थानों को मुक्त हस्त से दान दिया।महाराजा बलरामपुर ने लगभग दस लाख रूपये व्यय कर हिन्दू विश्वविद्यालय की नौ मील लम्बी चारदीवारी का निर्माण कराया।

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