बलरामपुर

इस रक्षाबंधन रहेगा भद्रा का साया, 2 दिन का होगा त्योहार, राखी बांधने के ये हैं 3 सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त

Rakshabandhan 2023: 30 अगस्त की सुबह 10.13 से रात 8 बजकर 57 मिनट तक रहेगा भद्रा का साया, 2 घंटे 3 मिनट ही रहेगा सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त

बलरामपुरAug 23, 2023 / 09:48 pm

rampravesh vishwakarma

Rakshabandhan 2023

बलरामपुर. Rakshabandhan 2023: इस बार रक्षाबंधन का त्योहार पिछले कुछ वर्ष की भांति फिर दो दिन मनाया जाएगा। भाइयों को राखी बंधवाने के लिए एवं बहनों को राखी बांधने के लिए लंबी अवधि का इंतजार करना पड़ेगा। सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त भी 2 घंटे 3 मिनट का रहेगा क्योंकि रक्षाबंधन के तिथि के दिन ही सुबह से ही भद्रा लग जा रहा है। इसलिए इस बार रक्षाबंधन का त्योहार 30 अगस्त या 31 अगस्त को मनाया जाए, इसे लेकर संशय की स्थिति निर्मित हो रही है। 30 अगस्त को सुबह 10.13 से पूर्णिमा तिथि लग रही है जो 31 अगस्त की सुबह 7.46 तक रहेगी। पौराणिक नियम अनुसार इस अवधि में रक्षाबंधन का त्योहार मनता है लेकिन जैसे ही 30 अगस्त को पूर्णिमा तिथि चढ़ रही है, वैसे ही भद्रा सुबह 10.13 से लग जा रहा है जो रात को 8.57 तक रहेगा, इसलिए 30 अगस्त को सुबह से लेकर रात्रि 8.57 तक बहनें भाइयों की कलाई पर रक्षाबंधन नहीं बांध सकेगी।

नगर के ज्योतिषी पंडित जितेंद्र तिवारी ने इस विषय में बताया कि इस बार रक्षाबंधन की पूर्णिमा तिथि के दिन भद्रा काल लग जाने की वजह से मुहूर्त को लेकर के लोगों में काफी संशय की स्थिति है कि राखी का त्योहार किस दिन मनाया जाए। उन्होंने बताया कि 30 अगस्त को पूर्णिमा तिथि से लेकर रात्रि 8.57 तक भद्रा काल रहेगा जो रक्षाबंधन के लिए सर्वत्र वर्जित है, इसलिए रक्षाबंधन मुहूर्त के हिसाब से ही करें।
प्रथम सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 31 अगस्त की सुबह 5.43 से लेकर सुबह 7.46 तक रहेगा। द्वितीय सर्वश्रेष्ठ 30 अगस्त को रात्रि 8.57 से लेकर मध्य रात्रि 12 बजे तक रहेगा। तृतीय सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 31 अगस्त की सुबह 7.46 से लेकर सायं 6.17 तक रहेगी। इन तीन सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त में बहनें अपनी सुविधा अनुसार भाइयों की कलाई पर राखी बांध सकतीं हैं।
बताए मुहूर्त अनुसार 31 अगस्त को दिन भर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जा सकता है, इसमें किसी प्रकार का अनिष्ट एवं संदेह की स्थिति नहीं है। पंडित जितेंद्र ने बताया कि भद्रा काल में राखी नहीं बांधने के कारण के पीछे पौराणिक कथा है। इसके अनुसार लंका के राजा रावण की बहन ने अनजाने में भद्रा काल के समय ही राखी बांधी थी।
इसी दिन राम द्वारा रावण का वध हुआ था, इसलिए भद्रा काल को रक्षाबंधन के कार्य में अनिष्ट कारक मानते हैं और इस काल में रक्षाबंधन नहीं होता है।

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रक्षाबंधन त्योहार मनाने के पीछे ये पौराणिक कथा
पंडित जितेंद्र तिवारी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार असुरों का राजा बलि सैकड़ों यज्ञ करने के बाद शक्तिशाली होकर देवराज इंद्र के इंद्रासन पर हमला बोल दिया। इससे देवराज इंद्र की पत्नी घबरा गई और रक्षा के लिए भगवान विष्णु के पास गई। भगवान विष्णु रक्षा का वचन देकर वामन अवतार में राजा बलि के पास जाते हैं।
यहां वे राजा बलि से तीन पग जमीन मांगते हैं, दो पग जमीन देने के बाद तीसरा पग राजा बलि अपने सिर पर रखवाते हैं, इसी दौरान राजा बलि को ज्ञान हो जाता है कि यह सामान्य पुरुष नहीं बल्कि भगवान नारायण हैं। तब भगवान बोलते हैं हम तुम पर प्रसन्न हैं जो मांगना चाहते हो मांगो।
तब राजा बलि भगवान से कहते हैं आप हमारे दरबार के पहरेदार बनिए, भगवान तथास्तु कहकर दरबार में पहरेदार बन जाते हैं। इधर बहुत दिन होने के बाद भी भगवान विष्णु वापस नहीं लौटते हैं तो उनकी पत्नी लक्ष्मी व्याकुल हो जाती हंै और राजा बलि के पास पहुंचती हंै।
यहांं राजा बलि को भाई बनाकर रक्षा सूत्र बांधती हंै और बदले में अपने पति भगवान विष्णु को मांगकर वापस लेकर जाती हैं। जिस दिन यह हुआ, उसी दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी, तब से लेकर आज पर्यंत तक रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है।

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