लंबे समय से नपा जो फिल्टर युक्त पानी देने का दावा कर रही है, वह बेइमानी से कम नहीं है। आज स्थिति यह है पुरानी पद्धति से पानी सप्लाई किया जा रहा है, ऐसे में पानी की गुणवत्ता खराब हो इससे इंकार नहीं किया जा सकता। 50 साल पहले स्थापित नपा के फिल्टर प्लांट से यहां की लैब से बगैर चैक किया हुआ पानी लोगों को सप्लाई किया जा रहा है। हॉलाकि यहां के जिम्मेदार पीएचई की लैब से शुद्धता की जांच किए जाने की बात कह रहे हंै। लेकिन पत्रिका ने जब पीएचई कार्यालय से जानकारी ली तो सामने आया कि 27/06/2023 के बाद से नपा ने पानी की लैब में जांच नहीं नहीं करवाई है। यहां भारत सरकार के सीपीएचईईओ मई 1999 वाटर सप्लाई एण्ड ट्रीटमेंट प्लांट द्वारा स्वीकृत गाइड लाइन के अनुसार पेयजल सप्लाई का काम नहीं हो रहा।
पत्रिका ने नपा के नए और पुराने दोनों फिल्टर प्लांटों में पहुंचकर स्थिति जानी। इस दौरान प्लांट के कर्मचारी ने फिल्टर प्लांट घुमाते हुए स्थिति दिखाई। सर्वप्रथम वैनगंगा नदी में लगी इंटकवेल से पानी सीधे फिल्टर वाटर टैंक में आता जो प्लांट में बने नालों से होता हुए फाक्सीलेटर टंकी में जाता है। यहां एक ब्लीचिंग पाउडर की बाल्टि की आकार की टंकी बनी हुई है, जिसमें करीब एक से डेढ इंच के होल से ब्लीचिंग पाउडर युक्त पानी हजारों गैलन पानी में शुद्धीकरण के नाम पर मिलाया जा रहा था। इसके बाद पानी रोटल टैंक और फिल्टर टैंक से होकर सीधा शहर की पानी टंकियों में सप्लाई किए जाने की बात कर्मचारी ने बताई। यहां प्लांट में हजारों गैलन पानी में मिलाए जा रहे ब्लीचिंग पाउडर की मात्रा नाकाफी दिखाई दी।
नियमानुसार फिल्टर प्लांट का पानी सप्लाई होने से पहले उसे लैब में चैक होना चाहिए, लेकिन यहां पर ऐसा नहीं हो रहा। प्लांट में लैब के लिए कोई भी कर्मचारी हैं जबकि यहां पर कुछ साल पहले लैब सामग्री लाई गई थी जो कबाड़ हो गई। इसके अलावा इलेक्ट्रोक्लोरीनेशन संयंत्र की मशीनें भी खराब होकर कबाड़ में तब्दील हो गई है। वहीं पीएचई की लैब में भी पानी जून 2023 के बाद से नहीं भेजा गया है।
विशेषज्ञों की माने तो तय गाइड लाइन के अनुसार फ्लोराईड 1.0 मिग्रा पानी में होने पर नुकसानदायक नहीं है, लेकिन यदि इसकी मात्रा 1.5 हो जाए तो फ्लोरोसिस बीमारी पनप सकती है। वहीं आर्सेनिक की मात्रा 0.01 से 0.05 होने पर शरीर में काले धब्बे, तलवों में कड़ापन और मानसिक बीमारी घेर सकती है। वहीं पानी में मटमैला पन से डायरिया, टायफाइड और पीलिया जैसी बीमारी आसानी से शरीर में जगह बना लेती है। अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक हर सप्ताह चार से पांच पीलिया, डायरियां के मरीज भर्ती हो रहे हैं। वहीं कोसमी में एक बालिका की जान भी डायरियां से जा चुकी है। हालाकि वहां अलग फिल्टर प्लांट से पानी सप्लाई किया जाता है।
जिला अस्पताल में इस मौसम में डायरिया के अलावा पीलिया, टाईफाइड और पेट दर्द के मरीज लगातार आ रहे हैं। हालहि में हुई बारिश से वैनगंगा नदी का मटमैला पानी फिल्टर प्लांट पहुंच रहा है। कुछ क्षेत्रों में नलों से मटमैला पानी निकल रहा है। प्रतिदिन ही शहर के किसी न किसी वार्ड से मटमैला पानी की सप्लाई होने की शिकायतें भी आ रही है।
इनका कहना है।
यह बड़ा दुर्भाग्य का विषय है, हजार से 12 सौ रुपए बचाने के फेर में शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। लैब में नियमित पानी की जांच कराए बगैर पानी सप्लाई किया जा रहा है। यह शहरवासियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ है।
योगराज लिल्हारे, नेता प्रतिपक्ष नपा बालाघाट
मनोज पांडे, सीएमएचओ पानी की जांच के लिए पीएचई की लैब पानी भेजा जाता है। हालाकि पानी कब से लैब में नहीं भेजा गया है हम पता करवाते हैं। कर्मचारियों से निर्धारित समयावधि में पानी की लैब में जांच करवाने निर्देशित किया जाएगा।
कमलेश पांचे, सभापति जल शाख नपा बालाघाट