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बालाघाट

सिकलसेल रोगियों के मामले में प्रदेश में दूसरे नंबर पर बालाघाट जिला

12 सौ पॉजीटिव आए सामने, हाईड्रोक्सी यूनिया प्रक्रिया में रखे गए 1048 मरीज
स्वास्थ्य महकमा चला रहा अभियान दो लाख 38 हजार की अब तक की गई जांच
स्कूल-स्कूल पहुंचकर विद्यार्थियों की जाएगी जांच

बालाघाटNov 20, 2024 / 11:34 am

mukesh yadav

12 सौ पॉजीटिव आए सामने, हाईड्रोक्सी यूनिया प्रक्रिया में रखे गए 1048 मरीज

12 सौ पॉजीटिव आए सामने, हाईड्रोक्सी यूनिया प्रक्रिया में रखे गए 1048 मरीज

मुकेश यादव
इंट्रो:-
एड्स और कुपोषण से कलंकित बालाघाट जिले में सिकलसेल बीमारी तेजी से पांव पसार रही है। स्थिति यह हो चुकी है कि रोगियों की संख्या के मामले में जिला प्रदेश में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। स्वास्थ्य महकमा भी इस स्थिति पर चिंता जाहिर कर रहा है। बीमारी के उन्नमूलन के लिए अभियान चलाया जा रहा है।
बालाघाट. जिला स्वास्थ्य विभाग सिकलसेल रोगियों को चिन्हित करने अभियान चला रहा है। 2023 से शुरू किए गए अभियान के तहत अब तक दो लाख 38 हजार व्यक्तियों की जांच की जा चुकी है। इनमें 3541 संभावित रोगी सामने आए हैं। वहीं करीब 12 सौ व्यक्ति सिकलसेल पॉजीटिव पाए गए हैं। जिला चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मनोज पांडे के अनुसार वंशानुगत होने वाली इस बीमारी को लेकर वर्तमान में 1048 रोगी ऐसे हैं, जिन्हें हाइड्रोक्सी यूनिया प्रक्रिया में रख उपचार किया जा रहा है। यह आंकड़ा जिले को प्रदेश में दूसरे नंबर पर लाकर खड़ा कर रहा है।
क्या है सिकलसेल रोग
डॉ पांडे के अनुसार सिकल सेल रोग एक वंशानुगत रक्त विकार है। जिसमें लाल रक्त कोशिकाएं असामान्य हो जाती हैं और जल्दी मर जाती है। सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाएं सख्त और चिपचिपी हो जाती हैं और अक्षर सी के आकार की बन जाती है। ये कोशिकाएं रक्त वाहिकाओं में आसानी से नहीं जा पातीं और छोटी रक्त वाहिकाओं में फंस जाती है। इससे रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन और रक्त का प्रवाह धीमा हो जाता है या बंद हो जाता है। सिकल सेल रोग से पीडि़त लोगों में एनीमिया हो सकता है। एनीमिया तब होता है, जब शरीर में ऑक्सीजन ले जाने के लिए पर्याप्त स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं नहीं होती।
सिकल सेल से जुड़े लक्षण
:- अचानक तीव्र और बिना किसी चेतावनी के दर्द।
:- हड्डियों में दर्द ।
:- आंखों में नुकसान।
:- पैर में सूजन व दर्द।
:- लकवा (पैरालायसिस)
:- संक्रमण का खतरा।

सिकल सेल रोग के कारण
:- माता-पिता से एचबीबी जीन विरासत में मिलता है।
:- माता-पिता दोनों पॉजीटिव तो बच्चे में यह रोग होने के 60 प्रतिशत संभावना।
:- अगर किसी व्यक्ति को सिर्फ एक माता-पिता से सिकल सेल जीन मिलता है, तो वह सिकल सेल लक्षणों का अनुभव नहीं करता। हालांकि, वह अपने बच्चों को यह जीन दे सकता है।
:- सिकल सेल रोग जिले के आदिवासी बाहूल्य क्षेत्र से अधिक सामने आ रहा है।
:- सऊदी अरब भारतीय, हिस्पैनिक और भूमध्य सागरीय मूल के परिवारों में भी यह रोग हो सकता है।
इन इलाकों से अधिक मरीज
डॉ मनोज पांडे ने बताया कि जिले में सिकलसेल के रोगी सार्वाधिक आदिवासी बाहूल्य वन क्षेत्रों से सामने आ रहे हैं। इनमें जिले के बैहर, बिरसा और परसवाड़ा तहसील क्षेत्र के अलावा लामता और लांजी क्षेत्र के कुछ क्षेत्रों से सिकलसेल रोगी सामने आ रहे हैं।
इसलिए परीक्षण अनिवार्य
डॉ पांडे के अनुसार सिकल सेल रोग और सिकल सेल लक्षण आमतौर पर जन्म के समय नियमित नवजात स्क्रीनिंग परीक्षणों के दौरान रक्त परीक्षण से पता चलता है। एक दूसरा रक्त परीक्षण जिसे हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस कहा जाता है, निदान की पुष्टि करता है। सिकल सेल एनीमिया से पीडि़त लोगों में लाल रक्त कोशिकाएं अर्धचन्द्राकार के आकार की हो जाती हैं। समय पर जांच करने से इस बीमारी का पता किया जा सकता है।
यह बरतें सावधानी
शराब, धूम्रपान या अन्य नशायुक्त चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। कोई भी परेशानी हो तो डॉक्टर से संपर्क करें। सिकल सेल मरीज को संपूर्ण संतुलित खुराक, भोजन लेना चाहिए। शरीर में जो विटामिनों की कमी हो वह सब उसे मिल सके। सिकल सेल डिजीज से निपटने के लिए प्रोटीन और मैक्रोन्यूट्रिएंट से भरपूर आहार लेना बहुत जरूरी होता है। शरीर में इनकी कमी मरीज में कुपोषण का कारण बन सकती है। इसलिए अपनी डाइट में प्रोटीन से भरपूर आहार जैसे मछली, पोल्ट्री, दाल, बीन्स, अंडे शामिल कर सकते हैं।
आजीवन बीमारी, उपचार संभव
सीएमएचओ डॉ पांडे के अनुसार सिकलसेल रोग एक आजीवन बीमारी है। हालांकि इसका इलाज उपलब्ध है, लेकिन स्टेम सेल प्रत्यारोपण हमेशा उपलब्ध नहीं होते और कई जोखिम लेकर आते हैं। हालांकि, जल्दी निदान और उपचार आपके लक्षणों और जटिलताओं की संभावनाओं को कम करने में मदद कर सकता है। निरंतर देखभाल के साथ, आप एक पूर्ण सक्रिय जीवन जिया जा सकता है।
वर्सन
कुंडल से पहले रिपोर्ट करें मिलान-
सिकलसेल एक वंशानुगत रोग है, जो अधिकांशतह माता-पिता से बच्चों में आता है। इस रोग के मामले में हमारा जिला प्रदेश में दूसरे नंबर पर है। हमारी जिलेवासियों से अपील है कि वे अपने वर-वधु की कुंडली मिलाने से पहले जांच रिपोर्ट मिलान करें। माता-पिता में से यदि कोई एक पॉजीटिव तो बच्चे में यह रोग होने के चान्स बहुत कम हो जाते हैं।
डॉ मनोज पांडे, सीएमएचओ

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