जनता दल से मिला था टिकट सतेंद्र सोलंकी को 1993 में जनता दल से चौधरी अजित सिंह ने बरनावा से प्रत्याशी बनाया था। चौगामा क्षेत्र में सतेंद्र का विरोध हुआ। आए दिन पंचायतों के दौर चले। चौधरी अजित सिंह को अपना निर्णय वापस लेना पड़ा। चुनाव से कुछ समय पहले टीकरी निवासी सुधीर राठी को जनता दल से सिंबल दे दिया गया। सतेंद्र सोलंकी ने इस चुनाव में निर्दलीय ताल ठोकी। उस चुनाव में भाजपा के त्रिपाल धामा ने सुधीर राठी और सतेंद्र सोलंकी को चित कर दिया था। इसके बाद सतेंद्र का चौधरी अजित सिंह से मोह भंग हो गया। प्रदेश में मुलायम सिंह की सरकार थी तो सतेंद्र सोलंकी ने सपा का दामन थाम लिया।
1996 में सपा के टिकट पर उतरे मैदान में 1996 में बरनावा विधानसभा से सतेंद्र ने सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा। उसके सामने रालोद के समरपाल सिंह विजयी हुए। 2007 के विधानसभा चुनाव में बरनावा विधानसभा सीट से रालोद से चुनाव लड़ा। इसमें वह जीत गया था। 2012 के विधानसभा चुनाव में उसे उम्मीद थी कि चौधरी अजित सिंह फिर से छपरौली से टिकट देंगे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। परिसीमन में बरनावा विधानसभा सीट समाप्त हो गई थी। बरनावा के अधिकांश गांव छपरौली विधानसभा में शामिल कर लिए गए थे। छपरौली से रालोद का टिकट वीरपाल राठी को मिला। ऐसा होने पर सतेंद्र सोलंकी बसपा में कूद गया।
2017 में मेरठ से लड़ा चुनाव 2017 के विधानसभा चुनाव में सतेंद्र ने मेरठ कैंट से बसपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा। उस चुनाव में सतेंद्र को हार का मुंह देखना पड़ा था। करीब दो माह पहले ही सतेन्द्र सोलंकी ने बसपा को अलविदा कहकर अपने भाई हरेंद्र सोलंकी के साथ भाजपा का दामन थाम लिया था। भाजपा प्रत्याशी डाॅ. सत्यपाल सिंह के लिए दोनों भाइयों ने दिन-रात मेहनत की थी। एक सप्ताह पहले इंद्रपाल हत्याकांड में जब दोनों को दोषी ठहराया गया तो दोनों भाई सन्न रह गए। उन्हें सुनवाई के दौरान ही गिरफ्तार कर लिया गया था। अब पटियाला हाईकोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। बड़ौत भाजपा के मीडिया प्रभारी राजीव तोमर का कहना कि सतेंद्र सोलंकी ने भाजपा की सदस्यता ली थी। अभी उन्हें निकाले जाने का कोई आधिकारिक आदेश नहीं आया है।
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