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आजमगढ़

आखिर इस सीट पर बसपा का क्या है मंसूबा, प्रत्याशी न उतार क्या मैसेज देना चाहती हैं मायावती ?

जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए नामांकन शुुरू हो चुका है। सपा और भाजपा ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतार पत्ते खोल दिये हैं। 14 सीट जीतने के बाद भी बसपा अभी खामोश है। मायावती ने अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र में प्रत्याशी न उतार सस्पेेंस बढ़ा दिया है। कारण कि बसपा के पास 14 सदस्य है। पार्टी के चुनाव न लड़ने की स्थिति में ये सदस्य किसका साथ देंगे इसकी जोरदार चर्चा है। कारण कि जिन्हें इनका साथ मिला उसकी जीत पक्की हो जाएगी।

आजमगढ़Jun 27, 2021 / 09:38 pm

रफतउद्दीन फरीद

Mayawati

मायावती

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
आजमगढ़. जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए नामाकंन चल रहा है। कुछ घंटे में नामांकन की प्रक्रिया बंद हो जाएगी लेकिन आजमगढ़ में भाजपा और सपा को छोड़कर किसी अन्य दल ने दावेदारी नहीं की है। खासतौर बसपा का दावेदारी न करना किसी के गले नहीं उतर रहा है। कारण कि यह दल दो बार इस कुर्सी पर कब्जा कर चुका है। इस बार भी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरने के बाद उसे दावेदारों में गिना जा रहा था। बसपा की चुप्पी ने भाजपा और सपा की बेचैनी बढ़ा दी है। कारण कि चुनाव न लड़ने की स्थिति में उसके 14 सदस्य निर्णायक की भूमिका में होंगे।

 

बता दें कि जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर हमेंशा से सपा और बसपा का वर्चश्व रहा है। सपा यहां चार तो बसपा दो बार अपना अध्यक्ष बना चुकी है। बीजेपी को आज तक जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जीत नहीं मिली है। इस चुनाव में सपा 84 में से 25 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं बसपा 14 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है। बीजेपी को मात्र 11 सीट मिली है। सर्वाधिक 27 सीटों पर निर्दलियों को सफलता मिली है। इसके अलावा अपना दल, उलेमा कौंसिल, सुभासपा, एआईएमआईएम, कांग्रेस आदि दलों को एक एक सीट मिली है। यहां निर्दलियों को किंग मेकर माना जा रहा था लेकिन बीजेपी ने कई सदस्यों का समर्थन हासिल कर अपने सदस्यों की संख्या 24 पहुंचा ली है।


यदि देखा जाय तो बीजेपी बहुमत से अभी 19 व सपा 18 कदम दूर है। बसपा ने अब तक अपने उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है जबकि भाजपा ने संजय निषाद और सपा ने विजय यादव को एक माह पूर्व ही मैदान में उतार दिया है। बसपा पहली बार इस चुनाव में चुप्पी साधे है। वहीं दूसरी तरफ पार्टी के निष्कासित 11 सदस्यों सपा मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात के बाद पार्टी के टूटने का खतरा बढ़ गया है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि बसपा मुखिया चुप रहना बड़ा संकेत है।

 

आजमगढ़ में उनके पास इतना संख्या बल नहीं है कि अपने दम पर चुनाव जीत सके। जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीतने के लिए कम से कम 43 सदस्यों का समर्थन चाहिए। बसपा के पास 29 सदस्य कम हैं। अगर सारे निर्दलीय बसपा के साथ चले जाय तब भी वह बहुमत हासिल नहीं कर पाएगी। पार्टी में मची उठापठक के बीच मायावती नहीं चाहेंगी कि विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें हार का सामना करना पड़े। ऐसे में शायद बसपा प्रत्याशी उतारे ही नहीं।

 

बसपा के जिलाध्यक्ष अरविंद कुमार अभी इस मुद्दे पर कुछ बोलने को तैयान नहीं है। वहीं दूूसरी तरफ बसपा की चुप्पी से सपा और भाजपा की बेचैनी बढ़ गयी है। बसपा के 14 सदस्य किसके साथ खड़े होंगे यह कह पाना मुश्किल है। दोनों ही दल इन्हें साधने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन सभी जानते हैं कि आलाकमान का जिधर इशारा होगा ये सदस्य उसी के साथ जाएंगे। सपा में बेचैनी थोड़ी ज्यादा इसलिए है कि बसपा मुखिया इस समय सपा से खासी नाराज है। वहीं दूसरी तरफ मायावती यह भी नहीं चाहेंगी कि भाजपा आजमगढ़ में मजबूत हो। ऐसे में चुनाव दिलचस्प होता दिख रहा है। कारण कि वर्तमान में बसपा चुनाव लड़े या न लड़े लेकिन उसकी भूमिका किंग मेकर की जरूर होगी।

BY Ran vijay singh

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