बता दें कि पिछले पंचायत चुनाव समाजवादी पार्टी ने प्रमोद यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष का प्रत्याशी बनाया था। बाद में दुर्गा प्रसाद यादव व आलमबदी हवलदार के साथ खड़े हो गए थे जिसके कारण प्रमोद का टिकट काटकर हवलदार यादव की बहु मीरा यादव को प्रत्याशी बना दिया गया था। इसके बाद प्रमोद व दुर्गा का विवाद शुरू हुआ तो बढ़ता ही चला गया। प्रमोद के भतीजे रन्नू यादव पल्हनी से ब्लाक प्रमुख चुने गए तो प्रमोद के विज्ञापन से दुर्गा गायब हो गए और जीत का पूरा श्रेय पूर्व मंत्री बलराम यादव को दिया गया।
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इसके बाद उकरौरा में प्रमोद यादव व दुर्गा यादव के पुत्र विजय यादव के बीच फायरिंग हुई। इस घटना के बाद चाचा भतीजे के बीच विवाद इतना बढ़ गया कि प्रमोद में दुर्गा को धृतराष्ट्र तक कह डाला। वर्ष 2017 के चुनाव में प्रमोद बसपा में शामिल हो गए। प्रमोद सदर से दुर्गा के लिए चुनाव भी लड़ना चाहते थे लेकिन मायावती ने भूपेंद्र सिंह मुन्ना को प्रत्याशी बना दिया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव आजमगढ़ से चुनाव लड़े तो प्रमोद फिर पार्टी में वापस आ गए।
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प्रमोद यादव को जिलाध्यक्ष पद का प्रमुख दावेदार माना जाता था लेकिन हवलदार की कुर्सी बरकरार रही। प्रमोद को साधने के लिए पार्टी ने पल्हनी से उन्हें ब्लाक प्रमुख पद का उम्मीदवार बना दिया। वहीं दुर्गा के पुत्र विजय यादव को जिला पंचायत अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बना दिया गया। इसके बाद चर्चा भतीजे में फिर राजनीतिक समझौता हो गया। दुर्गा पुत्र के साथी ही भतीजे को जीताने में लग गए।
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तीन दिन पूर्व जब प्रमोद के आहोपट्टी आवास पर छापेमारी कर पुलिस ने भारी मात्रा में हथियार बरामद किया तो पहली बार दुर्गा प्रमोद के लिए पुलिस प्रशासन से लड़ते नजर आये। आरोप लगाया कि सरकार के मौखिक इशारे पर विरोधी प्रत्याशियों के घर से नाजायज तरीके से बरामदगी दिखा उत्पीड़न किया जा रहा है। चर्चा भतीजे के साथ आने जिले की राजनीतिक सरगर्मी बढ़ने के साथ ही दूसरे दलों की चुनौती भी बढ़ गयी है। कारण कि प्रमोद को भी जनाधार वाला नेता माना जाता है। इससे जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव भी दिलचस्प होने की उम्मीद है।
BY Ran vijay singh