बता दें कि महेंद्र राजभर सुभासपा के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे। ओमप्रकाश राजभर के बाद उन्हें सुभासपा का सबसे मजबूत नेता माना जाता था। वर्ष 1996 से 2012 तक लगातार चार विधानसभा चुनाव में मऊ सदर सीट से माफिया मुख्तार अंसारी को एकतरफा जीत मिलती रही। पहली बार 2017 के चुनाव में सुभासपा-भाजपा का गठबंधन हुआ और मऊ सदर विधानसभा सुभासपा के खाते में गई। गठबंधन प्रत्याशी सुभासपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व जमीनी कार्यकर्ता महेंद्र राजभर को प्रत्याशी बनाया गया। पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भुजौटी में आयोजित चुनावी रैली में प्रत्याशी महेंद्र राजभर को कट्टप्पा की संज्ञा दी। प्रधानमंत्री ने मंच से एलान किया कि कट्टप्पा ही बाहुबली का अंत करेगा।
इस चुनाव में पहली बार मुख्तार अंसारी को जीत के लिए पसीने बहाने पड़े। महेंद्र राजभर को मात्र 8,698 मतों से हार मिली। इसके बाद महेंद्र 2022 के चुनाव की तैयारी में जुट गए। उन्होंने अपना पांच साल जनता के बीच गुजार लेकिन 2022 में सपा और सुभासपा का गठबंधन हुआ तो ओमप्रकाश ने यह सीट मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को दे दी। यही नहीं ओमप्रकाश राजभर ने खुले मंच से मुख्तार अंसारी का समर्थन किया। यहीं से सुभासपा में दरार पड़नी शुरू हुई।
महेंद्र राजभर ने खुद को चुनाव से दूर रखा और सही समय का इंतजार करते रहे। सपा से सुभासपा का गठबंधन टूटने के बाद उन्होंने ओमप्रकाश राजभर पर पार्टी का उपयोग पैसे लूटने के लिए करने तथा माफिया और उसके परिवार को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए पार्टी से छोड़ दी। महेंद्र के पार्टी छोड़ने का असर साफ दिखा कि अब तक 115 बड़े नेता सुभासपा छोड़ चुके हैं। अब महेंद्र राजभर ने सुभासपा के मुकाबले नई पार्टी बनाने का फैसला किया है। उन्होंने पार्टी के नाम की घोषणा नहीं की है लेकिन दावा किया है उनकी पार्टी नवरात्र में अस्तित्व में आ जाएगी। ऐसे में सुभासपा की मुश्किल बढ़नी तय है। कारण कि पूर्व में सुभासपा छोड़ने के बाद शशि प्रताप सिंह ने नई पार्टी बनाने के साथ ही अखिलेश यादव से नजदीकी बढ़ानी शुरू कर दी है। अब महेंद्र राजभर किसके साथ खड़े होंगे यह कह पाना मुश्किल हैं लेकिन यह तो है कि मुश्किल सिर्फ ओमप्रकाश की बढ़ेगी।