बता दें कि मुलायम सिंह यादव को जिले से जितना लगाव था यहां के लोग उतना ही नेता जी का सम्मान करते थे। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव को छोड़ दें तो सपा यहां हमेंशा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। यहां के लोगों ने हमेंशा खुलकर मुलायम सिंह यादव का सपोर्ट किया। वर्ष 1992 में सपा के गठन के बाद जब मुलायम सिंह यादव वर्ष 1993 में बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और सरकार बनाई तो उसमें आजमगढ़ की महत्वपूर्ण भूमिका थी। जिले की सभी दस सीटों पर गठबंधन का कब्जा हुआ था।
इसी के बाद वर्ष 1994 में आजमगढ़, मऊ और बलिया को मिलाकर मंडल बनाने की बात चली। केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ पासवान चाहते थे कि मऊ मंडल मुख्यालय बने। इसके पीछे तर्क था कि मऊ आजमगढ़ और बलिया के मध्य स्थित है। इससे लोगों को आसानी होगी। इसके लिए कल्पनाथ राय ने पूरी ताकत लगा दी थी। चुंकि कल्पनाथ राय की गिनती प्रदेश के कद्दावर नेताओं में होती थी और उन्हें पूर्वांचल में विकास पुरुष के रुप में जाना जाता था, इसलिए सभी यह मान लिए थे कि वे अपने मकसद में कामियाब हो जाएंगे लेकिन अंतिम समय में मुलायम सिंह यादव ने बाजी पलट दी।
चर्चा थी कि कभी भी मंडल की घोषणा हो सकती है। इसी बीच मुलायम सिंह की आजमगढ़ में जनसभा लगी। जजी मैदान में सभा चल रही थी तभी नेताजी ने आजमगढ़ को कमिश्नरी का दर्जा देने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि आजमगढ़ को कमिश्नरी बनाया जाता है। वे वरिष्ठ आईएएस अफसर प्रेमनारायण को अपने साथ लेकर आए थे। मंच से ही उन्होंने घोषणा कर दी कि प्रेमनारायण आजमगढ़ के पहले कमिश्नर होंगे। इसके बाद उन्हें तत्काल कार्यभार भी ग्रहण करा दिया गया। यहीं नहीं अगले ही दिन यहां डीआईजी की भी तैनाती कर दी गई। मुलायम सिंह के इस दाव से तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री कल्पनाथ राय चारों खाने चित्त हो गए थे।
इसके बाद पूर्वांचल में सपा सपा का वर्चश्व बढ़ता गया और कांग्रेस का पतन शुरू हुआ तो अब तक जारी है। वर्ष 2014 में मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से सांसद चुने गए। चुनाव में हारजीत का अंतर मात्र 63 हजार मतों का था। इससे मुलायम आहत थे। चुनाव जीतने के बाद उन्होंने आजमगढ़ से दूरी बना ली। फिर भाजपा के लोगों ने ब्रजेश यादव के नेतृत्व मेें मुलायम सिंह यादव के गुमशुदा होने का पोस्टर शहर में चिपका दिया और लालटेन लेकर उनकी तलाश में निकले। इस मामले में एफआईआर भी दर्ज कराई गई।