बहुजन समाजपार्टी मैनपुरी उपचुनाव नहीं लड़ रही है। यहां 1 लाख 30 हजार दलित मतदाता हैं। यह मतदाता जिसके साथ जाएंगे उसका पलड़ा भारी होगा। विधानसभा चुनाव 2022 में जिस तरह से बीजेपी ने दलित वोटों सेंधमारी की थी उससे पार्टी का मनोबल ऊंचा है। वहीं सपा को भरोसा है कि मुलायम सिंह के प्रति सहानुभूति का उसे फायदा मिलेगा। दलित उसके साथ खड़ा होगा।
मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र में यादव के बाद शाक्य मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यह करीब 3 लाख 25 हजार शाक्य मतदाता हैं। बीजेपी ने रघुराज सिंह शाक्य पर दाव लगाया है। अगर शाक्य मतदाता खुलकर बीजेपी के साथ खड़े होंगे तो बीजेपी को वर्ष 2019 के चुनाव से अधिक वोट मिल सकता है। वहीं अगर सहानुभूति में शाक्य मतदाता सपा के साथ खड़े होते हैं तो सपा की जीत निश्चित हो जाएगी।
मैनपुरी में अगर 4 लाख 30 हजार यादव मतदाता हैं तो यहां क्षत्रियों की संख्या भी 2 लाख 25 हजार के करीब है। इसके अलावा 1 लाख 10 हजार ब्राह्मण तथा 70 हजार वैश्य मतदाता है। अगर बीजेपी के दावे में दम है और यह जातियां उसके साथ मजूती से खड़ी हुई तो लड़ाई बराबर की है। कारण कि तीनों जातियां मिलकर यादव मतदाताओं के करीब पहुंच जाती हैं।
सपा से अलग होने के बाद सुभासपा ने रमाकांत कश्यप को मौनपुरी से मैदान में उतारा था। उनका नामाकंन खारिज हो गया है। सुभासपा के लोग पर्चा खारिज होने के लिए सपा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। वहीं कश्यप बीजेपी को पिछले चुनावों में वोट करता रहा है। अगर मैनपुरी का कश्यप बीजेपी के साथ खड़ा हुआ तो चुनाव काफी नजदीकी हो सकता है। वहीं यहां एक लाख लोधी मतदाता किसके साथ खड़े होंगे इसपर भी परिणाम निर्भर करेगा।
मैनपुरी में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 80 हजार से एक लाख के बीच है। यह मतदाता खुलकर सपा के साथ खड़े हैं। बीजेपी बैलेंस करने के लिए दलितों को साधने की कोशिश में जुटी है। अगर बीजेपी का अति दलित प्लान सफल होता है तो लड़ाई टफ हो जाएगी।
कोई जीते बनेगा इतिहास
मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में जीत किसी की हो लेकिन इतिहास बनेगा। अगर बीजेपी चुनाव जीतती है तो वह न केवल सपा का आखिरी किला ढ़हा देगी, बल्कि उसका यहां खाता खुल जाएगा। वहीं अगर सपा जीतती है तो मुलायम सिंह के परिवार को मैनपुरी में कभी चुनाव न हारने का रिकार्ड कायम रहेगा। डिंपल यादव मैनपुरी की पहली महिला सांसद बनेंगी।