scriptआजमगढ़ में ऐतिहासिक व पौराणिक स्थलों को कभी नहीं मिला महत्व | Historical and mythological sites never got the importance in Azamgarh Hindi News | Patrika News
आजमगढ़

आजमगढ़ में ऐतिहासिक व पौराणिक स्थलों को कभी नहीं मिला महत्व

पुरातत्व और पर्यटन विभाग ने कभी नहीं दिया ध्यान

आजमगढ़Aug 16, 2017 / 09:18 am

वाराणसी उत्तर प्रदेश

Azamgarh

आजमगढ़ में ऐतिहासिक व पौराणिक स्थलों को कभी नहीं मिला महत्व

आजमगढ़. जिले को किसी पहचान की जरूरत नहीं है। आजादी की लड़ाई में यह जिला अग्रणी की भूमिका में रहा। सबसे पहले एक माह के लिए आजाद होने का गौरव प्राप्त किया, वहीं ऋषि-मुनियों ने यहां अपनी तपो स्थली बनायी। त्रेतायुग में भगवान राम का भी यहां आगमन हुआ, लेकिन इन देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों व आजादी की लड़ाई से सम्बन्धित स्थानों की तरफ कभी किसी का ध्यान नहीं गया। कभी अगर कुछ स्थलों के विकास के लिए थोड़ा बहुत धन भी आया तो उसका सही ढंग से उपयोग नहीं हुआ। पुरातत्व विभाग एवं पर्यटन विभाग ने भी यहां की उपेक्षा ही की है।
आवंक में हुई खुदाई में पुराने हथियार, मौर्य काल के सिक्के आदि प्राप्त हो चुके हैं। पौराणिक दृष्टिकोण से सती अनुसुइया के तीनों पुत्र दुर्वासा, दत्तात्रेय व चंद्रमा ऋषि ने इसी जिले में अपनी तपोस्थली बनायी। हजारों वर्ष पुरानी बाराह मूर्ति और पाल्हमेश्वरी देवी का मंदिर भी इसी जिले में है। अंगे्रजों का कम्पनी बाग जहां 1942 में जिले के क्रान्तिकारियों ने क्रांति का बिगुल फूंक जिले को सर्वप्रथम आजाद कराने का गौरव प्राप्त किया, वह स्थान भी उपेक्षा के चलते अस्तित्व खोता जा रहा है।
आजमगढ़ जिला, ऐतिहासिक, पौराणिक और पुरातात्विक क्षेत्र में विशेष महत्व रखता है। 1857 की क्रांति में जनपद की अग्रणी भूमिका रही। अल्प समय के लिये ही सही आजमगढ़ सबसे पहले गुलामी की जंजीर से मुक्त होने वाला जिला रहा। अंग्रेजों की वह कम्पनी बाग जहां लड़ाई की शुरूआत हुई आज कुंवर सिंह उद्यान के नाम से जाना जाता है लेकिन इसका मुख्य द्वार जर्जर हो गया है।
अत्रि मुनि व सती अनुसुइया के तीनों पुत्र दुर्वासा ऋषि, महर्षि दत्तात्रेय और चन्द्रमा ने जिले को ही अपनी तपोस्थली के रूप में चुना। इनके तपोस्थली पर प्रति वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मेले का आयोजन होता है। निजामाबाद का चरण पादुका साहिब गुरुद्वारा पौराणिक के साथ-साथ पुरातात्विक महत्व भी रखता है। बताते हैं कि गुरुनानक देव ने वाराणसी यात्रा के दौरान इस स्थान पर विश्राम किया था और दीक्षा दी थी। उसी समय उनके शिष्यों द्वारा इस स्थान पर गुरुद्वारे का निर्माण कराया गया। स्थानीय लोग बताते हैं कि वर्ष 1979 में सिख धर्म को मानने वाली वाराणसी की महिला ने गुरुद्वारे में हथियार दबे होने का स्वप्न देखा। उसके बाद वह निजामाबाद आयी और पुराने गुरुद्वारे के सामने खण्डहर में कारसेवकों के माध्यम से खुदाई कराया। खुदाई में साढ़े चार फिट लम्बा व साढ़े चार फिट चैड़ा लाखौरी ईंट का बना ताबूत मिला। ताबूत में प्राचीन काल के युद्ध में प्रयुक्त होने वाले कवच, तलवार, बाना-बनेठी, मेजा, बंदकू आदि पाये गये। आज इसी स्थान पर आकाल वुंगा की स्थापना की गयी है। हथियारों को गुरुद्वारे में सुरक्षित रखा गया है।
आंवक में वर्ष 2008 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटनांचल एवं सारनाथ के पुरातत्व अधिकारी केके मुहम्मद, एसके शर्मा, अजय श्रीवास्तव, मनोज द्विवेदी की देखरेख में खुदाई की गयी। यहां मौर्य काल के सिक्के, बर्तन और मुहर पायी गयी। पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत काल में यह गांव अवन्तिकापुरी के नाम से जाना जाता था, जो धनुर्विद्या का केन्द्र था। राजा परीक्षित का कोट भी यहीं था।
पल्हना में स्थित पाल्हमेश्वरी धाम पूर्वांचल का महत्वपूर्ण शक्तिपीठ है। यह हजारों वर्ष पुराना बताया जाता है। लालगंज क्षेत्र के पकड़ी गांव में स्थित बाराह मंदिर भी हजारों वर्ष पुराना बताया जाता है। इसके अतिरिक्त महराजगंज स्थित भैरव बाबा धाम, ब्रह्मड्ढौली का बाबा पाताल मंदिर भी ऐतिहासिक महत्व रखता है। यह लोगों के श्रद्धा का केन्द्र है।
जिले में पर्यटन को बढ़ावा दिलाने के लिये आज तक कोई प्रभावी प्रयास नहीं किया गया है। गत वर्षों में कुछ मंदिरों के जीर्णोद्धार, यात्री शेड का निर्माण आदि कराया गया लेकिन फिर उपेक्षित छोड़ दिया गया। आज हालत यह है कि यहां लगने वाले मेले आदि में तो बाहर के श्रद्धालु आते हंै लेकिन पर्व समाप्त होने के बाद पर्यटक दिखाई नहीं देते। इन पौराणिक स्थलों की सुरक्षा पर भी प्रशासन का ध्यान नहीं है। जिले में पर्यटन विभाग का कार्यालय भी नहीं है। इससे भी इस क्षेत्र में प्रभावी प्रयास नहीं हो पा रहा है।
आजमगढ़ से रण विजय सिंह की स्पेशल रिपोर्ट…

Hindi News/ Azamgarh / आजमगढ़ में ऐतिहासिक व पौराणिक स्थलों को कभी नहीं मिला महत्व

ट्रेंडिंग वीडियो