बता दें कि आजमगढ़ जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर लंबे समय तक कांग्रेस का कब्जा रहा। यूपी में जैसे ही कांग्रेस हासिए पर आई और सपा-बसपा का उदय हुआ दोनों पाटिर्यों ने इस कुर्सी पर मजबूत पकड़ बनायी। सपा की ताकत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि एक बार पार्टी ने एक नर्तकी कामेश्वरी बाई को जिला पंचायत अध्यक्ष बना दिया था। उस समय भाजपा के विक्रम बहादुर सिंह को उपाध्यक्ष बनाया गया था। अध्यक्ष बनने के कुछ दिन बाद ही कामेश्वरी बाई का निधन हो गया। इसके बाद विक्रम बहादुर सिंह को अध्यक्ष का चार्ज दिया गया था। इसके अलावा कभी बीजेपी के किसी नेता को इस सीट पर बैठने का अवसर नहीं मिला।
पिछले पांच चुनावों की बात करें तो सपा के सपा तीन बार व बसपा दो बार अपना अध्यक्ष बनाने में सफल रही है। बसपा की तरफ से दो बार मीरा आजाद अध्यक्ष रहीं। वहीं सपा की तरफ से एक बार हवलदार यादव व पिछले दो बार से लगातार उनकी बहू मीरा यादव अध्यक्ष चुनी गयी। हमेंशा नंबर एक और दो की लड़ाई इन्हीं दलों के बीच देखने को मिली है। यह पहला चुनाव है जब बसपा की तरफ से उम्मीदवार की घोषणा नहीं हुई है। पार्टी चुनाव लड़ेगी या किसी का समर्थन करेगी इस मुद्दे पर कोई पदाधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है।
ऐसे में अभी सीधा मुकाबला भाजपा और सपा में दिख रहा है लेकिन सदस्यों के समर्थन के मामले में सपा भाजपा से आगे है। सपा के 25 सदस्य है जबकि वर्तमान में बीजेपी के पास 24 सदस्य हैं। बहुमत के लिए 43 सदस्यों के समर्थन की जरूरत है। यानि सपा बहुमत से 18 व भाजपा 19 कदम दूर है। माना जा रहा है कि अपना दल का एक सदस्य भाजपा के साथ जा सकता है लेकिन भासपा के एक व कांग्रेस के एक सदस्य पर सपा का दावा मजबूत है। ऐसे में यह कहना आसान नहीं है कि जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा। दोनों ही दल अपनी जीत का दावा कर रहे हैं।
BY Ran vijay singh